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निरूपण वैज्ञानिक रीति से करेगा । वह किसी भी विषय को 'अव्यक्त' कहकर टालेगा नहीं ।
सचमुच तीर्थङ्कर भगवान् के जीवन में केवलज्ञान प्राप्ति की घटना अपूर्व है । सामान्य वद्धि शायद उसका महत्व न ऑक सके ! किन्तु जो विचक्षण मनीषी है और बाल- रवि के अरुणोदय में दिव्य-दर्शन पाते है, वह समझ सकते हैं ज्ञानसूर्य के प्रभावक उदय का महत्व | भ० महावीर के महान व्यक्तित्व मे वह ज्ञानसूर्य प्रगट हुआ जिसके दर्शन पाने के लिये बड़े २ योगी लालायित रहते है ! आत्मा के अनन्त ज्ञान और अनन्त दर्शन गुण इसी समय प्रकाशमान होते है, जो अव्यय आत्माल्हाद के पूरक बनते है । वे कृतकृत्य सहायोगिराट् स्वयं सुखी होते है और लोक को सुख वितरण करते हैं । यही कारण है कि कैवल्यपद पाते ही तीर्थंकर महावीर सर्वमान्य हो गये । बौद्धग्रन्थ 'संयुत्त निकाय' (भा० २ पृ० ६४ ) में महावीर प्रभू का यह विशेष प्रभाव स्पष्ट शब्दों में व्यक्त किया गया है । महात्मा गौतम बुद्ध के जीवन पर भ० महावीर की सर्वज्ञ दशा का इतना प्रभाव पड़ा प्रतीत होता है कि भ० महावीर के धर्मप्रचार करते रहने तक कर्मक्षेत्र में उनके दर्शन कठिनता से मिलते हैं । यही अवसर है कि बौद्ध संघ में विद्रोह के वीज उगने लगे थे। कोई बौद्ध भिक्षु साधुत्व के लिये नागन्य (दिगम्वरत्व) को आवश्यक समझ कर नग्न रहने लगे, तो कोई मांस-मछली का निषेध करने लगे थे । म० गौतमबुद्ध के ५० से ७० वर्ष की मध्यवर्ती
१. 'महावग्ग' (८ | २८) में लिखा है कि उस समय कुछ बौद्ध भिनु नग्न भेष में उनके पास आये और नागण्य (Nakedness) की प्रशंसा और महत्ता बताने लगे । बुद्ध ने इसका निषेध किया और कहा कि तीर्थकरों की तरह नग्न नहीं रहना चाहिये । कुछ भिक्षु