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________________ ( २७० ) हो तो कोई क्यों सयमी जीवन की कठिनाई को मोल ले? उम पर म० गौतमबुद्ध की मीठी वागी 'पौर मोहक मुखाकृति ने जनता को मोह लिया था। लोग मंत्रमुग्ध हए. उनके उपदेश को गहण करते थे--तर्क सिद्वान्त को वहाँ गु जाइश नहीं थी। ___एक ग्बास बात इस सन्बन्ध में दृष्टव्य यह है कि यद्यपि भ. महावीर और शाक्यमुनि गौतम समकालीन थे, परन्तु उनका कभी परम्पर साक्षात नहीं हया। म० वद ने कभी जैन तीर्थङ्कर से मिलने का प्रयत्न नहीं किया और न उन्होंने कभी महावीर जी की तीत्र आलोचना की, प्रत्यत बौद्ध शास्त्रों में कई स्थलों पर स्पष्ट कहा गया है कि निर्घन्य नातृपत्र को लोग सर्वज-सर्वदर्शी कहते है-वह सम्माननीय तत्त्ववेत्ता हैं । निस्सन्देह महावीर अपनी नियमित और वैज्ञानिक साधना का मीठा फल पूर्ण जान पाने में सफल हुए थे। इसलिए नहीं कि उन्हे उसको पाने की म० युद्ध की तरह तीव्र आकाक्षा थीवह आकाक्षा से परे थे। उदासीन भाव से उन्हों ने मौन साव कर तपस्या की। मनोविज्ञान के आधार से जीवन के दावपेचो का अध्ययन किया और आत्मिक विज्ञान का वह शुद्ध रूप प्रकट किया जिसमे कर्ममल सर्वथा धुल जाता है-आत्मा पूर्णज्ञान की पुनीत प्रभा प्रकट करता है। फलतः महावीर वर्द्धमान त्रिकालज्ञ सर्वज्ञ हुए। बौद्व भी शाक्यसिंह गौतम को सर्वज्ञ कहते हैं, परन्तु वह यह भी स्पष्ट करते हैं कि म० बुद्ध की सर्वज्ञता हर समय उनके साथ नहीं रहती थी-वह जब जिस बात को जानना चाहते थे तब उस बात को ध्यान से जान लेते थे। २ जैनष्टि से उनका यह ज्ञान पूर्णज्ञान न हो कर अवधिज्ञान प्रगट होता है । पूर्णज्ञानी धर्मतत्व का . भमयुः पृ० २ मिलिन्द-पएह (SBE) भा• ३५ पृ० १५४
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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