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आजीविक भिक्षु मंत्र एवं ज्योतिष विद्याओं के सहारे आजीविका भी कर लेते थे, यह बात कई उल्लेखों से स्पष्ट है । इस प्रकार वह भ्रष्ट जैन साधु प्रतीत होते है ।
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मञ्जुलि गोशाल और पूरणकाश्यप भ० महावीर से आयु में अधिक थे और उनके सर्वज्ञ होकर धर्मप्रचार करने के पहले से - ही अपने २ मतों का प्रचार करने लगे थे। इस प्रकार आजीविकों ने जिस जैन साहित्य और जैनधर्स से अपने सिद्धान्त निर्माण में सहायता ली थी, वे भ० महावीर से प्राचीन थे | जैनशास्त्र स्पष्टत मलि गोशाल और पूरण को भ० पार्श्वनाथ की शिष्यपरम्परा से सम्बन्धित बतलाते हैं । ऐसी सूरत मे उनपर भ० महावीर के उपदेश का प्रभाव नहीं पड़ सकता, अलबत्ता उनके साधक जीवन के प्रयोगों का मूक- प्रभाव उन पर पड़ा हो तो आश्चर्य नहीं | कुछ लोग समझते हैं कि भ० महावीर ने 'नग्नत्व' ( दिगम्बर भेप ) आजीविक नेता महलि गोशाल के अनुरूप धारण किया था, परन्तु ऐसे विचारक यह भूल जाते हैं कि तीर्थङ्कर - परम्परा में दिगम्बरभेष सर्वमान्य रहा है- ''नग्नत्व' हो 'लिनकल्प' हैं । उस पर जिस समय मलिगोशाल साधक महावीर के पास पहुँचा था उस समय वह वस्त्र पहने हुये था और भगवान् के शरीर पर वह 'देवदूष्य' वस्त्र भी नहीं था, जिसकी कल्पना श्वेताम्वरीय शास्त्रों में की गई है । ३ इस दशा में भ० महावीर गोशाल की नकल करके कैसे दिगम्वरत्व धारण करते ? वह तो पहले से ही दिगम्बर मुनि थे । कतिपय आजीविक सिद्धान्तों का मेल भ० महावीर के धर्म से इसीलिये दिखता है कि मूलत इन मत प्रवर्तकों ने प्राचीन जैनधर्मसे अपने सिद्धान्तों
१ प्रो० वारुचा कृत 'श्राजीविस' भा० : पृ० ६७-६८
१ उचासग दसानो, हार्नेले संस्करण, परिशिष्ट पृ० २