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( २६१ ) गणना छै मुख्य धर्मप्रवर्तकों मे की है। उनके अनुसार मस्करि (सद्धलि ) गोशाल और पूरण काश्यप दो भिन्न व्यक्ति थे। किन्तु बौद्धग्रन्थ "अङ्ग त्तरनिकाय" मे पूरण को गोशाल का शिष्य सा प्रगट किया है और उसके छ अभिजात सिद्धांत को पूरण का बतलाया है। संभव है कि सिद्धान्तों के सादृश्य को पाकर दोनों मतप्रवर्तकों ने उपरान्त आपस मे समझौता कर लिया हो । यही कारण है कि देवसेना कार्य मस्करि और परण का एक साथ उल्लेख कर रहे है।
जो हो, भ० महावीर से इन मत प्रवर्तकों का विशेष सम्पर्क रहा प्रतीत नहीं होता । वे दोनों ही अपने आजीविक सम्प्रदाय का प्रचार करने में जुट गये थे और कुछ सफल भी हये थे। किन्तु जिस समय भ. महावीर का धसैप्रचार हुआ तो आजीविक-श्रावक वस्तुस्थिति से परिचित होकर जिनेन्द्र को शरण मे आये । अधिकांश आजीविक जैनी हो गये और जो बच रहे थे वह भी कई शतियों के पश्चात् दि० जैन सघ मे अन्तर्हित हो गये । मूलत. उनका निकास जैनवर्स से हुआ भी था । आजीविक
नेता मस्करि गोशाल और पूरण जैनमुनि तो थे ही, परन्तु __उन्होंने अपने सिद्धान्त भी जैनों के 'पूर्व' नामक अङ्गग्रन्थों से लिये थे।२ आजीविक साधुओं का नग्नभेष, सल्लेखनाव्रत के सहश नियम आदि बाते जैनियों के समान ही थीं। उनका 'आजीविक' नाम भी उनका मूलतः जैन होने का द्योतक है, क्योंकि जैनसाधु के लिए 'आजीवो' नामक दोष अर्थात् किसी प्रकार की आजीविका करने से विलग रहने का उपदेश है ।३
१ अनि० भा० ३ पृ० ३८३ २ संजैइ०, भा० २ खंख ।
पृ. ६७-७१ ३ 'धादीनिमित्त प्राजीवो वणिवगेद्यादि।'-मूलाचार ।