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________________ ( २६० ) श्वेताम्वरीय शास्त्र "भगवती मूत्र" में मवलि पुत्र गोशाल का वर्णन है। उसमे लिखा है कि कोल्लग में जब भ० महावीर छद्मस्थावस्था में विचर रहे थे, तब उन्होंने गोशाल की प्रार्थना स्वीकार करके उसे अपना शिष्य बनाया । महावीर और गोशाल साथ २ छ वर्ष तक पणि भमि मे रहे। किन्तु श्वेताम्बरीय 'कल्पसूत्र' में भ. महावीर पणियभूमि में केवल एक वर्ष रहे लिखे हैं ।२ उधर उनके 'आचारागसूत्र' में लिखा है कि भगवान छद्मस्थदशा में बोलते नहीं थे-मौन का अभ्यास करते थे।३ अतएव यह जी को नहीं लगता कि भ. महावीर ने गुरुपद प्राप्त करने के पहले ही मजलिगोशाल को अपना शिष्य बना लिया हो, सचमुच 'गोशाल' को भ० महावीर का शिष्यत्व पाने का सौभाग्य प्राप्त न हुआ 18 दिगम्बरीय शास्त्रों के मकरिपूरण और श्वेताम्बरीय मङ्खलिगोशाल नाम एक व्यक्ति के द्योतक हैं, क्योंकि दोनों संप्रदायोंके शास्त्रों में उन्हे आजीविक मत के नेता लिखा है। गोशाल के सिद्धान्त भी प्राय दोनों शास्त्रों में एक-से मिलते हैं। दिगम्बराचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने मस्करिके मत की गणना 'अज्ञानमत' में की है। वही वात श्वेताम्बरीय 'सूत्रकृताङ्ग' (२।१। ३४५ ) में भी लिबी है । बौद्धग्रन्थ 'सामञफल सुत्त' मे गोशालका मत इस ढंग का ही निर्दिष्ट किया है। उसमे लिखा है कि 'अबानी और ज्ञानी.संसार में भ्रमण करते हुये समान रीति से दु.खका अन्त करते हैं । बौद्धों ने मालगोशाल की १. भगवतीसूत्र ११ २. कल्पसूत्र १२२ ३. श्रासू. JS.I, pp 80-87 ४. डॉ. वारुया भी स्वाधीनरूप में इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। x गोम्मरसार देखो। * दीनि• मा० २ पृ० १३-१४
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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