________________
( २४५ )
आयु-काय वाले मनुष्य अपने आवास आदि भी वडे बनाते थे । उस समय के पर्वत, वृक्ष, नदी, नाले सभी बड़े चढ़े होते थे । पाठक, पहले पढ़ चुके हैं कि काल चक्र के प्रभावानुसार इस क्षेत्र मे कैसे २ परिवर्तन होते हैं । भूगर्भविद्याविशारदों ने अपने अन्वेषणो द्वारा इस मान्यता को स्पष्ट कर दिया है कि पुरातन काल के मनुष्यादि जीव आयु काय मे अबसे कहीं ज्यादा बड़े और लम्बे होते थे । १ अस्तु भ० महावीर ने इस विषय को स्पष्ट करने के लिये ही सर्वोत्कृष्ट गणित शास्त्र का उपदेश दिया था । श्रेणिक ने उसे इस प्रकार समझा था । अनन्त संख्या सर्वोत्कृष्ट है और उसका प्रयोग ग्यारह प्रकार से निम्नप्रकार होता है:
-
(१) नाम - अनन्त – नाम मात्र का अनन्त । यद्यपि वस्तु अनन्त न हो परन्तु उसकी विशालता को बतलाने के लिए बोल चाल में उसे 'अनन्त' कहना 'नामानन्त' है ।
१ भूगर्भशास्त्र की गवेषणाओं से प्राचीन काल के बड़े २ शरीर वाले जन्तुओं का अस्तित्व सिद्ध हुआ है । उक्त खोजों से पचास २ साठ २'फुट लम्बे प्राणियों के पाषाणावशेष (Possils) पाये गए हैं । इतने लम्बे कुछ अस्थिपञ्जर भी मिले हैं। वे जितने अधिक दीर्घकाय के अस्थि पंजर व पाषाणके शेष होते हैं; उतने ही अधिक प्राचीन अनुमान किये जाते हैं । इससे यही सिद्ध होता है कि पूर्वकाल में प्राणी दीर्घकाय हुआ करते थे । उधर प्राणीशास्त्र का यह नियम है कि जिस जीव का जितना भारी शारीरिक परिमाण होगा उतनी ही दीर्घ उसकी श्रायु होगी। प्रत्यक्ष में भी हम देखते हैं कि सूक्ष्म जीवों की श्राय बहुत अल्पकाल होती है । हाथी सब जीवों में बड़ा है, इससे हो उसकी श्राय सब जीवों से बड़ी है ।