________________
( २१३) जीव स्थावर और त्रस रूप से दो सरह के हैं। स्थावर जीव चल फिर नहीं सकते हैं - उनके केवल एक स्पर्शन इन्द्रिय है। केवल चार प्राण (१) स्पर्शन इन्द्रिय, (२) काय बल, (३) श्वासोश्वास, (४) आय हैं । त्रस जीव चल फिर सकता और वह द्वि-इन्द्रिय; त्रि-इन्द्रिय, चतुः इन्द्रिय और पंचेन्द्रिय होता है। इनके प्राण भी क्रमानुसार बढ़ जाते है । पंचेन्द्रिय जीव के जैसे बैल-भैंसा
आदि के दस प्राण होते हैं। पांच इन्द्रियां, तीन बल, श्वासोश्वास और आय उनके पूर्ण व्यक्त होते है। अब जरा सोचो, एक इन्द्रिय जीव जैसे वनस्पति या जलकायिक जीव की हिंसा मे अधिक प्राणों का घात होगा या पंचेन्द्रिय पशु के घात में ? पंचेद्रिय के घात में अधिक प्राणों का घात होगा और उतना अधिक ही पापबंध होगा, क्योंकि हिंसा भाव व द्रव्य प्राणघात से होता है। अतः एकेन्द्रिय अनेक छोटे जीवों के घात से कही ज्यादा हिंसा बड़े प्राणी के घात में होती है। एकेन्द्रिय जीव के घात से द्वेन्द्रिय जीव के घात मे असंख्यात गुणा पाप है। फिर भला विचारो पञ्चेन्द्रिय जीव के घात मे कितना अधिक पाप होगा ? अन्न-जल के विना तो जीवन निर्वाह असंभव है; परंत मास-मदिरा-मधु जीवनस्थिरता के लिये आवश्यक नहीं हैं । अतः वडे पशु को मार कर उसकी और उसके आश्रित अन्य जीवों की क्यों हिंसा की जावे ? मगया मे हिरणी को हत्यारे वेध लाते हैं-पक्षियों को अपने तीर का निशाना बनाते है, किन्तु कितनी करुण विलविलाहट होती है उनकी ! फिर उस छोटे से हिरनी के बच्चे को देखो जो मा के दूध पर निर्भर था अथवा घोंसले मे पक्षी के शिशुओं की चिल्लाहट सुनो जो अपनी मां के वियोग में तड़फड़ा रहा है। यह कैसे करुणोत्पादक दृश्य है ! क्या हक है मनुष्य को जो वह मां को बचे से अलग करे। मास भोजन मनुष्य के हृदय को कठोर और क्रूर बना देता है, जिसके कारण