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________________ (२०६) देशना को सुनकर सम्बोधि को प्राप्त हुये। वह दिगम्बर मुनि हुये और विपुलाचल पर्वत पर तप द्वारा कर्मों का क्षय करने में संलग्न रहे । वह अब लोकोपकार करने के लिए महापराक्रम प्रदर्शित कर रहे थे। एक दफा कौशाम्बी की रानी वहाँ आ भटकी और वहीं पर उन्होंने पुत्र-प्रसव किया। चेटक ने उसके पालन पोषण का प्रबन्ध एक ब्राह्मण परिव्राजक से करा दिया । १ चेटक के मुनि होने पर वैशाली का आधिपत्य उनके पुत्र को प्राप्त हुआ। * एक अन्य अवसर पर सेनापति सिंहभद्र भ. महावीर की वन्दना करने के लिये गये। उन्होंने भ० महावीर को नमस्कार किया और विनय पूर्वक पंछा, “प्रभो । लिच्छवि राजकुमार शाक्यमुनि गौतमबुद्ध की प्रशंसा करते हैं। उनके मत को अच्छा बताते हैं। यह क्या बात है ?" सिंहभद्र ने उत्तर में सुना कि 'गौतमबुद्ध के वचन मन को लुभाने वाले इन्द्रायण फल की तरह सुन्दर हैं, परन्तु सिंह । तुम तो कर्म सिद्धान्त के श्रद्धानी आवक हो, तुम्हे अक्रियावादी गौतम के मत से क्या प्रयोजन ? मुग्ध लिच्छविकुमार इस भेद को नहीं चीनते । जो कर्मों के फल को भोगने वाले आत्मा के अस्तित्व को भी स्पष्ट नहीं बता सकता और जो प्रगट हिंसावाद -मास लोलुपता का सवरण नहीं कर सकता, वह गुरू कैसा? क्या तुम आत्म द्रव्य मे विश्वास नहीं रखते और क्या तुम जीवों के घात मे हिंसा नहीं मानते ? क्या मृत मास खाना विधेयं है ? मल गये, जब तुमने बौद्धसंघ के लिये मास भोजन का प्रवन्ध किया था, तब वैशाली मे कैसा क्षोभ फैला था ? वैशाली मे सड़क-सड़क और चौराहे चौराहे पर धर्मश्रद्धालु जनता ने उस कर्म का विरोध किया था। सब ने एक स्वर से कहा था कि श्रमण गौतम जानबूझ कर औहेशिक मास १. उदायनकाम्य ( तामिल)-JA., VII pp +-5. -
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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