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________________ ( २०८ ) न्लेच्छों का दर्प घट चला था। सूरदत्त लड़ा भी बहादुरी से! उसने म्लेच्छों को मार भगाया। भद्रपुर ने उस विजयी वीर का स्वागत किया। राजसभा मे एक दिन उसके शौर्य का वखान हुआ । निनदत्त ने कहा, म्लेच्छों को मार भगाने में सच्ची वहादुरी नहीं है-वह स्थूल शत्रु हैं-दूर से दिखता है। वहादुरी अदृश्य शत्रुओं को जीतने में है। क्रोध, मान माया, लोभ, मद, काम-ये अदृश्य-सूक्ष्म पडरिपु सहज में जीते नहीं जाते। सूरदत्त इन्हें जीते तो कुछ वहादुरी है! शूरवीरता महाशीलवान बनने मे है ! जिनदत्त का यह वाग्वाण शूरदत्त के वैराग्य का कारण हुआ। उन्होने तत्तण श्रीधर मुनि के पास जाकर अहिंसादि महाव्रत धारण कर लिये और उग्र तपश्चरण द्वारा काम-क्रोवादि आभ्यन्तर शत्रुओं को परास्त करने में जुट गये । सम्यक्त्व का किला बनाया उन्होने और उसके फाटक पर संयम और तप की साकलें जड़ दी। सन्तोष की प्राचीर बनाकर उसे उन्होंने अजेय वनाया। उत्साह भावनारूपी धनुप लिया हाथ में, जो समितिसूत्र से खिंचा था। सत्य के बल पर उस धनुप को वह तानते थे और तप-तीर से कर्मशत्रु को भेदते थे। इस प्रकार एक सच्चे शुरवीर की तरह सूरदत्त ने वह आध्यात्मिक-अहिंसक युद्ध लड़ा और विजयी हुये-मोक्ष लक्ष्मी उनको मिली। राजन् ! यह सच्चे वीर का आदर्श है। जो कर्म-शर है वही वर्मशर वनता है। (जे कम्मे सूरा ते धन्मे सूरा!) जीवन को कमल पन्न पर पड़े ओसविन्दु की तरह डुलकते देर नहीं लगती । अतएव, मुमुक्षु को यात्मकल्याण करना उचित है।" चेटक इस धर्म क्या मद्रपुर महत पुर है ? यदि वही है तो उसे भेलसा सनम्ना चाहिये, जहाँ शक-म्लेच्छों का पानमय एक ऐतिहासिक घटना है ! इस विषय में खोज की जरूरत है।
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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