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सिंहभद्र भगवान के मामा होते थे। शेष बहनें मगावती, सुप्रभा, प्रभावती; चेजनी, ज्येष्ठा और चंदना नामक थीं। वे सब भ० महावीर की उमासना करने में रस लेती थीं । ज्येष्ठा, चंदना और चेलनी तो वीरसंघ में सम्मिलित होगई थीं । राजा चेटक ने कई सफल युद्ध लड़े थे, परन्तु अभी उन्हें अभ्यन्तर शत्र से जझने का अवसर नहीं प्राप्त हुआ था । एक दफा भ० महावीर का समोशरण वैशाली में आया। चेटक सपरिवार वन्दना करने गये । अहंत भगवान् के मुखारविन्द से उन्होंने धर्मोपदेश सुना। उन्होंने जिनेन्द्र की वाणी में सुना, भले ही 'मनुष्य सहस्रावधि दुर्दान्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त करे, परन्तु उसकी महान विजय होगी वह कि जब वह अपने को जीत लेगा। इसलिये अपने से युद्ध करो । वीरो, वाह्य शत्रु से क्यों लड़ते हो ? जो अपने पर विजय पाता है. वह सुखी होता है । अभ्यन्तर विजयही महान् है। परास्त शत्रु अपमानित और त्रस्त हुआ प्रतिकार की आग में भलसता है और वदला लेने की फिक्र में रहता है। इस विजय में सुख-शान्ति कहाँ ? सुख-शान्ति अहिंसामय वातावरण मे है, जो आभ्यन्तर विजय में उपलब्ध होती है । चेटक ! भद्रपुर के राजा जिनचन्द्र के दो पुत्र सूरदत्त व जिनदत्त थे। सूरदत्त निस्सन्देह शस्त्र विद्या में निपुण शूर था । जिनदत्त अश्वविद्या में निष्णात था, परन्तु ऐश्वर्य उसे सुहाता न था-भोगों से वह विरक्त था। भद्रपुर पर म्लेच्छों का आक्रमण हुआ। राजा ने जिनचन्द्र को उनसे मोर्चा लेने के लिये भेजा । म्लेच्छों का टिड्डीदल चला आ रहा था। वह म्लेच्छ जो धर्मकर्म नहीं जानते थे-हिंसा-अहिंसा के भेद को नहीं पहचानते थे। जिनचंद्र ने उन पर वहादुरी से आक्रमण किया, परन्तु उसकी सेना म्लेच्छों के सम्मुख अपने पैर न जमाये रही। हठात् वह रणाश्रण से पीछे हटा। जिनचन्द्र ने सूरदत्त को सेना लेकर भेजा।
राजा जिन शवविद्यान्तु ऐश्वयों का