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________________ ( २०३ ) चित्' - अपेक्षाकृत कहा जाता है। एक पुरुष है, परन्तु वही भिन्न २ लोगों की अपेक्षा से पिता, पुत्र, मामा नाना आदि माना जाता है। इसी तरह एक वस्तु है । वह भी भिन्न २ अपेक्षा से भिन्न २ धर्मात्मक मानी जाती है। लोग पूंछते हैं, जीव नित्य है ? या अनित्य है ? क्या इस प्रश्न का उत्तर एक ही शब्द द्वारा एक समय में तुम दे सकते हो ? नहीं न ? ठीक है, शब्द वस्तु के अनेकांतक रूप को एक साथ पूर्णतः नहीं कह पाता ! तुम्हारा यह स्वर्णकुडल है राजन् ! जिस स्वर्ण से वह बना है उसी सोने से और भी आभूषण बनते हैं। मान लो, तुम्हारी तबियत मचल गई और तुमने कुंडल तुड़वा डाले और अंगूठी वनवा ली। क्या तुम उस स्वर्ण को अब कुंडल कहोगे ? 'नहीं।' बिल्कुल ठीक, परन्तु इसका कारण समझे ? हॉ, यही कि उसका आकार कुंडल-सा नहीं है । अत एव जान लो राजन् ! कि कुंडल स्वर्ण का एक आकार विशेष है, जो स्वर्ण से सर्वथा भिन्न नहीं है । वही स्वर्ण आकार परिवर्तन द्वारा नाना रूपों और नामों से पुकारा जाता है - उसके कुंडल, कटिसूत्र, कड़े अंगूठी आदि नाना गहने बनते और बिगड़ते हैं । अव राजन् ! बताओ, तुम्हारे स्वर्ण कुंडल का क्या स्वरूप है ? ठीक; स्वर्ण और आकार उसका स्वरूप है अकेला आकार नहीं और न अकेला स्वर्ण ! वे भिन्न होते हुये अभिन्न हैं ! एक नाशवान है और एक शाश्वत ! आकार विनाशीक है और स्वर्ण अविनाशी है - उसका कभी नाश नहीं होता; केवल उसके आकार बनते बिगड़ते रहते हैं । अब कहो, तुम्हारा कुएडल नित्य है या अनित्य ? ठीक है उत्तर तुम्हारा ! तत्व को तुमने समझ लिया ! वह नित्यानित्य है- आकार की अपेक्षा वह अनित्य है और स्वर्ण की अपेक्षा नित्य है । आकार बिगड़ता है और स्वर्ण हमेशा रहता है ! अब आत्मा के नित्य अथवा अनित्य स्वरूप
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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