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जिससे कोई भ्रम न हो: -
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(१) श्रेणिक महाराज के प्रकरण मे (पृष्ठ १५७ ) हमने रोहिणी एवं अन्य कथानकों का प्रसंग उपस्थित किया है । पूर्वाचार्यों ने प्रत्येक कथावृत्त को श्रेणिक के प्रश्नोत्तर रूप मे प्रसूत लिग्या ही है । वही शैली हमारी है ।
(२) अभयकुमार के विषय मे लिखते हुये (५० १६७) हमने मूढ़ताओं का जो वर्णन लिखा है वह ठीक वैसा ही है जैसा श्री गुणभद्राचार्यजी ने 'उत्तर पुराण' में लिखा है। पाठकगण मुकाविला करके देखें और मूढ़ताओं के जाल से अपने को निकालें । जिस जाति मूढ़ता का जैन धर्म में निषेध है उसी को सर्वोपरि महत्व देना मिथ्यात्व है ।
(३) जैन और बौद्ध -- दोनों स्रोतों से यह स्पष्ट है कि कुणिक अजातशत्रु भ० महावीर के धर्म में दीक्षित हुआ था । बौद्ध ग्रन्थों मे यह प्रकरण है कि अजातशत्रु ने सभी धर्मगुरुओं के पास जाकर साधुता का लाभ जानने की जिज्ञासा की थी । अतः इसी विषय का प्रतिपादन उसके प्रसंग मे किया गया है ।
(४) सेनापति सिंह का उल्लेख 'विनय पिटक' बौद्ध ग्रन्थ में है। जैन पुराण भी उनको सम्राट् चेटक का पुत्र बताते हैं । बौद्धग्रंथ मे हिंसा मूलक प्रसंग उनके सम्बन्ध में उपस्थित किया गया है । वही हमने लिखा है ।
इस प्रकार पाठकगण देखेगे कि इस शैली से जहाँ पूर्व परम्परा का लोप किसी रूप में भी नहीं किया गया, वहाँ उसके द्वारा वीर चरित्र मे नवीनता और रोचकता आ गई है । यही इसकी विशिष्टता है ।