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कोर कसर बाकी न छोड़ी ! बौद्धों के निकट म० गौतम बुद्ध ही सब कुछ थे । अतएव दोनों के जीवन-वृतान्तों मे अन्तर मिलना स्वाभाविक है । इतने पर भी यह वात नहीं कि भ० महावीर अथवा किसी अन्य तीर्थकर की जीवन घटनाओं का जैन साहित्य मे सर्वथा अभाव हो । भ० महावीर के विषय में जैन पुराण और कथा प्रन्थों में अनेक जीवन वृतान्त और प्रवचन प्रसंगों का विवरण विखरा पड़ा है । उसे ढूंढ़ कर शङ्खलावद्ध लड़ी में पिरो देना, जैन विद्वानों का कर्तव्य है । नैनेतर साहित्य, विशेपतचा वौद्ध साहित्य में जैन सम्बन्धी उल्लेख मिलते हैं । उधर भारतीय पुरातत्व मे बहुत कुछ सामग्री उपलब्ध हो सकती है । इस शैली को अपनाने का एक छोटा-सा प्रयत्न इस जीवनी के लिखने में हमने किया है । संभव है कि स्थिति पालक विद्वज्जन इससे सहमत न हों, यद्यपि उनके लिये भी कोई आपत्ति जनक बात हमें तो दिखती नहीं । हॉ, हमारी इस शैली में घटनाओं के कालक्रम का कोई ध्यान नहीं रक्खा गया है - वह रक्खा भी नहीं जा सकता, क्योंकि हमें यह पता ही नहीं चलता कि भ० महावीर किस समय किस स्थान में विहरे थे और अमुक घटना कव घटित हुई थी । व्यक्ति और स्थान के प्रसंग में जो उपदेश वचन निर्मन्थराट् ज्ञातृपुत्र महावीर के मुख से उस समय कहे गये-यह भी ठीक से ज्ञात नहीं होता । फिर भी भगवान् ने धर्मोपदेश तो दिया ही था । अतएव हमने शास्त्रीय उल्लेखों को ध्यान में रखकर धर्मोपदेश का निर्देशन अपनी वाणी मे किया है । हमारी इस शैली से जीवनी में रोचकता श्राने के अतिरिक्त साहित्य में वीर जीवन सम्बन्धी बिखरी हुई घटनाओं का संग्रह और प्रतिपादन भी एक हद तक हो जाता है । आशा है पाठकों को हमारी यह शैली रुचिकर होगी । कतिपय प्रसंगों का आधार स्रोत हम यहाँ स्पष्ट कर देना उचित समझते हैं,
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