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धर्म का प्रसार हुम्पा ।
यत की और वहा था । जैन
वृतिक सम्पर्क बढ़ा-प्रव भारत में वे सर्वथा म्लेच्छ न रहे। भ० महावीर के समवशरण में वे भी मानवों के साथ जारर धर्मोपदेश सुनते थे और उनमें से अनेक जैनी हो गये थे।
रानी राजगनार प्राईक तो जैन मुनि हो गया था। ईरान की बमपत्ति पर भी इसका प्रभाव पड़ा-वहाँ पशुयज्ञों का निषेध उनमें धर्मगुरुत्रों ने किया। उसी समय चीन देशमें भी अहिंसा धर्म का प्रसार हापा । सारांशतः भ० महावीर के धर्मोपदेश ने विश्वव्यापी क्रान्ति उपस्थित की और वह सफल हुई थी। इससे भारत का अन्तर्राष्ट्रीय महत्व भी तव बढ़ा था । जैन मुनियों का विहार कावुल, कन्धार, ईरान, तूरान, अरब, मध्य एशिया, मिश्र आदि देशों में होता था । वहाँ के आचार-विचार पर जैन सिद्धान्त का प्रभाव स्पष्ट दिखता है। सारांशतःभ० महावीर का सत्य-धर्म निरूपण लोक कल्याण का मूल मंत्र बना था। आज भी उसके द्वारा लोक का कल्याण होना सम्भव है। लोक उसको जाने और पहिचाने । हमारी शैली।
किन्तु खेद का विषय है कि भ० महावीर के इस आदर्श जीवन की घटनायें किसी भी स्रोत से एक व्यवस्थित शजला मे मिलती-वे हैं भी बहुत थोड़ी! बौद्धों की भॉति जैनों ने
की ओर ध्यान ही नहीं दिया कि वे अपने तीर्थकर के - जीवन की कोई ऐतिहासिक तालिका रक्खे-उन्होंने बीवन की एक सामान्य जीवन रेखा उपस्थित करके संतोष
इसके विपरीत बौद्धों ने म० बुद्ध के जीवन का एक लेखा जोखा बनाये रक्खा । इसका कारण जैनों और
टिभेद था-जैन व्यक्तित्व के नहीं, सिद्धान्त के है तीर्थङ्कर की अपेक्षा 'तीर्थकरत्व' उनके निकट विशेष की वस्तु है-तीर्थङ्करत्व का चित्रण करने में उन्होंने कोई