________________
( १८४)
है ? तुम अहिंसक वीर बने हो-समभाव और सहनशीलता के अन लेकर साधना को पराक्रम-भमि में आये हो-क्या पीछे हटोगे ? वीर आगे बढ़ते हैं और अपना शौर्य दर्शाते हैं । तुम उस क्षत्रिय की प्रशंसा करते हो जो जग को अभय बनाने के लिये अपराधी शत्र को दण्डित करता है-शत्र को पीठ नहीं दिखाता किन्तु यह श्राव्यात्मिक यद उससे भी महान है और इसका परिणाम भीमहान शुभकर और शुचितर है। क्या वन्धनमुक्त होने के लिये यह अहिंसक युद्ध नहीं लड़ोगे ? इस युद्ध में यही विशेपता है कि सब ही ऐहिक सामग्री और ससर्ग इसमे उत्सर्ग कर दिये जाते हैं इसका सैनिक निष्काम और निष्परिप्रही होकर सब कुछ सहन करता है और स्व-पर-कल्याण करने से उसे रस आता है । अतः मेघ ! तुम मेघ सम गम्भीर, उदार, सहनशील और समभावी वनो v
मेधकुमार का अज्ञान धुल गया था। उन्होंने अपने को क्षमाया और फिर से साधु दीक्षा ली । वह कमजोरी उनकी बुद्धि में आई ही क्यों ? उसके लिये प्रायश्चित उन्होंने किया। वह सच्चे मुनि हो गये-परे समभावी सहनशील और समुदार । उन्होंने सन्तश्रमणों की वैयावृत्ति करना अपना मुख्य लक्ष्य बनाया। सेवाधर्म के वह पुजारा बने । संयम से वह वर्तने लगे। मन, वचन, काय को उन्होंने वश में कर लिया। विपुलाचल पर्वत पर उन्होंने अपना तपोमय अतिम जीवन व्यतीत किया! उनका उदाहरण भ० महावीर की शिक्षा की व्यवहारिकता और लोकोपकारिता को स्पष्ट करता है । महत्वाकाक्षा बुरी नहीं; पर उसे ही अपने हृदयासन पर बैठा कर क्रोध-मान-माया-लोभरूप प्रवत्ति करना बुरा है। 'महतपद सहनशील, समभावी और सेवाधर्मी बनने से ही प्राप्त होता है। मेघकुमार प्रकरण यह बताता है। भगवान महावीर के आदर्श को वह सुझाता है।