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(१८३ ) और तुझ पर तीत्र प्रहार करने लगे। तने वैर का बदला लेने के दुर्भाव से रात दिन वेदना सह्कर प्राण छोड़े। क्या वह तीन वेदना याद नहीं है ? साधना के अभ्यास मे उतरते ही तुम घबरा गये और सुनो, फिर दूसरे जन्म में भी तुम विन्ध्यगिरि की अटवी मे हाथी हुए। उस वन में दावानल वार वार तुम्हें सताते थे। तुम ने एक छोर का भाग वृक्ष-तृण रहित सुरक्षित बनाया। जब वहाँ एक दिन दावानल धू-धकर जलने लगा तो तुम अपने बनाये हुए शरणगह मे पहुँचे । तुम ने देखा वहा तुम से पहले वहुत-से पशु अभय होने के लिये पहुँचे थे-थोड़ी सी जगह बाकी थी-सिकुड़ कर तुम उसी मे खड़े हो गये । उस आपत्तिकाल में सब ही पशु अपना २ वैर भूले हुए थे। खड़े २ शरीर को तुम खुजलाने लगे । जव पैर नीचा करने को हुए तो देखा उस स्थल पर एक खरगोश जान बचाने के लिये आ बैठा है। तुम वैसे ही एक पैर उठाये हुए तीन दिन तक खड़े रहे यदि तुम भूमि पर अपना पैर रखते थे तो वह विचारा खरगोश वेमौत मरता ! यही सोच कर तुम ने वह कष्ट सहन कर लिया। जब दावानल शान्त हुआ और सव जीव जन्तु अपने २ रास्ते लगे तो तुम भी एक ओर जाने को उद्यत हुए, परन्तु तीन पैरों पर खड़े रहने से तुम्हारा शरीर जकड़ गया था-तुम धड़ाम से गिरे और तुम्हारे ऐसी गहरी चोट आई कि तीसरे दिन उस शरीर को त्याग कर तुम रानी धारिणी की कोख में आ अवतरे। अव सोचो मेघकुमार ! करुण-वृत्ति और समभाव युक्त सहन शीलता के प्रभाव से ही तुम मगध के ऐश्वर्यवान् राजकुमार हुए और आत्मघातक भोग विलास त्याग कर अमण बने । तुम्हारे पास बल, वीर्य, पराक्रम और विवेक है। जब पशुयोनि में तुम ने उल्लेखनीय समभाव और सहनशक्ति दर्शाई थी, तो अब श्रमण होकर क्यों घबड़ा रहे हो? क्या यह दीनता तुम्हें शोभती