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मेघकुमार का वैराग्य और सम-सेवा-भाव !
'जल बुब्बुदसकधगुखणरुचि घण सोहमिव थिरं ग हवे | अहमिंदठाणाहं बलदेव पहुदि
पञ्जाया 11 — श्री कुन्दकुन्दाचार्य
मेघ कुमार भी राजा श्रेणिक विम्बसार के पुत्र थे । उनकी आठ रानिया थी, जिनके साथ वे भोग भोगते थे । उनके साथ संगीत - गान - विलास में अनुरक्त रहते थे । उन्हें कोई चिन्ता न थी । उनकी कोई वाञ्छा न थी, जिसकी पूर्ति न होती हो । वह सब प्रकार के मानवी सुखभोग मे आनन्द मग्न थे । युवावस्था ने उनके नेत्रों के आगे से जरा की जर्जरित दशा छुपा रक्खी थी ।
एक समय विहार करते हुये भ० महावीर राजगृह के उद्यान में पधारे। लोगों की टोली की टोली उनके दर्शन करने के लिये जाने लगी । राजा-महाराजा, उमराव सरदार, सेठ साहूकार, ब्राह्मण- पण्डित, आर्य-अनार्य - जिसने सुना वही भगवान् की वन्दना करने के लिये गया । राजगृह के मार्ग -हाट-बाजार चौक, जहा देखो वहा भगवान् महावीर के शुभागमन की चर्चा वार्ता थी । लोगों की मेदनो उमड़ती देख कर मेघकुमार ने अपने विलास गृह में बैठे २ पूछा, 'आज क्या उत्सव है, जो लोग उमड़े चले जा रहे हैं ? क्या उद्यान-यात्रा या गिरि यात्रा है " कंचुकी ने उत्तर दिया, 'राजगृह के बाहर श्रमण भगवान् महावीर पधारे हैं - उनके दर्शन करने के उत्सुक लोग वहीं चले जा रहे हैं !" यह सुनकर मेघकुमार को भी भ० महावीर के दर्शन करने की इच्छा हुई । वह अपने चार घंटों वाले रथ में बैठा और वहाँ पहुँचा