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निम्रन्थ मुनि होकर अभय राजकुमार ने दुर्धर तपश्चरण किया और कमों का नाश करके केवलज्ञान प्राप्त किया। केवलज्ञानी होकर वह भ० महावीर का दिव्य सन्देश फैलाने के लिए दूर देशों मे गये । पारस्य (ईरान) के राजकुमार आर्द्रक उनके मित्र थे। अभय राजकुमार ने उनको सम्बोधा । वह भगवान् की शरण मे आये और मुनि हो गये । आईक कुमार भी लोक मे धर्म प्रचार करते हुये विचरे थे। एक दफा जब भ० महावीर के संघ सहित रहने पर किसी आजीवक ने आक्षेप किया, तो बड़ी युक्ति से उन्होंने उसका निर्सन किया था। महावीर का संघ समूह लोकोपकार के लिये था । भ० महावीर उससे निर्लिप्त थे, वैसे ही जैसे जल से कमल पृथक रहता है ।
अन्त मे अभय राजकुमार अभयधाम मोक्ष को प्राप्त हुये थे।
१. बौद्धग्रन्थों में भी अभयराजकुमार का उल्लेख है और उनमें
भी उन्हें निग्रन्थ ज्ञातपुत्र भ० महावीर का भक्त प्रगट किया गया है। उन्होंने म० गौतमबुद्धका भी श्रादर सस्कार एक समय किया था, यह भी प्रगट है। (मज्झिमनिकाय-भमबु० पृष्ट १६-१९३)