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फिरते हुये वह दक्षिण भारत के कांचीपुर नगर में जा पहुंचे थे। वहाँ उन्होंने अपनी विद्या और कौशल से राजसम्मान प्राप्त किया था और राज पुरोहित सोमशर्मा की कन्या नन्दश्री के साथ उनका विवाह हुआ था। श्रेणिक के ज्येष्ठ पत्र अभय राज कुमार का जन्म इन्हीं की कोख से हुआ था । केरल नरेश मृगाक की विलासवती कन्या से भी उन्होंने विवाह किया था। उपश्रेणिक के पश्चात् यद्यपि चिलातपुत्र मगध के राजसिंघासन पर बैठा था, परन्तु वह शासन सूत्र संभाल न सका और वैभार पर्वत पर प्राचीन जैन संघ के दत्त नामक मुनि के निकट साधु हो गया था। उपरान्त श्रेणिक राजा हुआ था। भ० महावीर की मौसी और राजा चेटक की पत्री चेलनी उनकी अग्रमहिषी हुई थीं। इन्हीं के पुत्र कुणिक अजात-शत्र यवराज हुए थे। वारिषेण, हल्ल, विदल, जितशत्र, दंतिकुमार और मेघकुमार उनके भाई थे। श्वेताम्बरीय शास्त्रों में उनकी दश रानियां बताई गई हैं, जिन्होंने चन्दना आर्यिका के निकट शास्त्र अध्ययन किया था।
सम्राट श्रेणिक को जैनधर्म का श्रद्धान महारानी चेलनी के संसर्ग से हुआ था। श्रेणिक प्रारम्भ मे जैनधर्म से द्वेष रखते थे। एक दफा वह शिकार खेलने गये। मार्ग मे उनको एक यमधर नामक जैनमुनि दृष्टि पड़ गये। उनके कोपका वार न था। पांच सौ शिकारी कुत्ते मुनि पर छोड़ दिये; परन्तु मुनिवर की क्षमा शीलता ने उन कुत्तों को शान्त कर दिया। वे निरीह पशु पशुता भूल कर अहिंसक-वीर यमधर मुनि के चरणों मे लोटने लगे। श्रेणिक का क्रोध यह देखकर उबल पड़ा तीक्ष्ण वाण मुनि पर उन्होंने छोड़े; परन्तु तपोधन मुनि के अहिंसास्त्र के सामने वह भी विफल हुये। श्रेणिक मल्ला गये और एक मरे सांप को मुनि के १. हरिषेण कथाकोष पृ० १८२