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अथवा धवल थे । वह भी हरितापन गोत्र के ब्राह्मण थे । उनका जन्म कौशलपुरी मे बसु ब्राह्मण के घर मे हुआ था । नन्दा उनकी माता थी । ७२ वर्ष की आयु मे वह मुक्त हुए । दसवे मैत्रेय और अन्तिम गणधर प्रभास भी कौन्डिन्य गोत्र के ब्राह्मण थे । मैत्रेय को मेतार्य अथवा मेदार्य भी कहते हैं । वह वत्सदेश में तुरंगिकाख्य ग्राम के निवासी ब्राह्मण बल के गृह में उनकी स्त्री भद्रा की कोख से जन्मे थे |"
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बौद्धशास्त्रों में भी कतिपय उन महानुभावों का उल्लेख है जो एक समय भ० महावीर के भक्त थे । 'मज्झिमनिकाय में चल सकलोदायी नामक निर्ग्रन्थ मुनि को पंचत्रतों का प्रतिपादन करते हुये लिखा है । उसी ग्रन्थ मे अन्यत्र दीघ तपस्सी नामक मुनि का उल्ल ेख है, जिन्होंने गौतमबुद्ध से तीन दंडों (मनदण्ड. वचन दण्ड और कायदण्ड ) पर वार्तालाप किया था । इस घटना से उनका प्रभावशाली होना प्रकट है। सुरक्खत्त नामक एक लिच्छवि राजपुत्र भी प्रसिद्ध जैनमुनि थे। पहले वह बौद्ध थे, किन्तु बाद मे जैनमुनि हुये थे । जैनमुनि के कठिन जीवन से वह भयभीत हुये और फिर गौतमबुद्ध के पास पहुॅचे; परन्तु उनकी आत्मतुष्टि नहीं हुई । इसलिये वह फिर पाटिकपुत्र नामक जैनमुनि के निकट जैनधर्म मे दीक्षित हुये थे । २ इस उदाहरण से वीरसंघ मे व्यक्तिगत विचार स्वातन्त्र्य की महत्ता स्पष्ट होती है । परीक्षा प्रधानता ही उसमें मुख्य थी ! श्रावस्ती के कुलपुत्र अर्जुन भी एक समय जैनमुनि थे। जैन मुनियों का प्रभाव बौद्ध भिक्षुओं पर पड़ा था - उनमे से कुछ तो जैन मुनियों की देखादेखी नग्न रहने लगे थे ! ३ आखिर उस समय १. सर्जेइ०, मा० २ खंड १ पृ० १२७-१२६
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२. संजैह भ० २ खंड १ पृष्ठ १३१
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३. इ ं से जै०, पृ० ३६