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पंजाब में सम्भवतः गांधारदेश की राजधानी तक्षशिला भ० महावीर के शुभागमन से पवित्र हुई थी। वहाँ ही निकट में कोटेरा ग्राम के पास एक पहाड़ी पर भ० के शुभागमन को सूचित करने वाला ध्वंस मंदिर विद्यमान बताया गया है।
उत्तर भारतीय सौरदेश की राजधानी मथरा एक प्राचीन और प्रख्यात नगर है। भ० महावीर के शुभागमन से वह भी कृतार्थ हुआ था। उदितोदय वहाँ का राजा था। उसका राजसेठ जैनधर्म का दृढ़ उपासक था। उसने भगवान के निकट व्रतधारण किये थे ।२ __पाञ्चाल देश की राजधानी काम्पिल्य (कम्पिला) मे भी भगवान् का समवशरण अवतरा था। यहां का जय नामक राजा निग्रन्थ मुनि हो प्रत्येक बुद्ध हुआ था । श्रावक कुन्द कोलिय ने सपत्नी व्रत धारण किये थे २
इस प्रकार प्रायः समग्र भारतवर्ष मे भ० महावीरका पवित्र विहार हुआ प्रतीत होता है। उस पर 'हरि वंशपराण" मे जिन देशों को वीर विहार हुआ लिखा है, उनमें से कुछ भारत के बाहर प्रतीत होते है। प्राचीनकाल मे भारतकी सीमायें अफगानिस्तान से भी दूर तक फैली हुई थीं। अतः आश्चर्य ही क्या वहां, बल्कि उनसे भी,दूर के देशों मे वीर-विहार हुआ हो ! आर्यखड में उनका समावेश है और तीर्थकर आर्यखंड में विहार करते ही हैं ! यवन श्रुति, काथ तोय, सुरभीरु, ताण, कार्ण आदि देश भारत वाह्य प्रतीत होते हैं। अभय राज कुमार के मित्र आर्दक पारस्य (ईरान) के राज कुमार थे। वह भ. महावीर के भक्त हुये थे। लग भग पाच सौ यवन (योङ्का Greeks) भी भ० महावीर १. संजै ह०, भा० २ खर १ प० ६९-१०१ २. संजे ह०, भा॰ २ खर १ पृ०६६-१७
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