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( १३४ ) प्रभ महावीर का समोशरण इसी उद्यान में अवतरित हुआ था। राजा जीवन्धर ने भगवान के दर्शन करके अपने भाग्य को मराहा और वह मुनि दीक्षा लेकर वीर संव में सम्मिलित होगया ।विहार करते हुये जब वह राजगृह पहुंचे तब विपुलाचल पर्वत से उसी समय मुक्त हुये जिस समय महावीर स्वामी पावासे मोक्ष गये थे।
उधर से उत्तरापथ की ओर आते हुये भगवान् का समोशरण पोदनपुर में भी अवतरित हुआ प्रतीत होता है। वहाँ का राजा विदूदाज भगवान् का भक्त था ।। ___ मालवा और राजपूताना की वीरभूमि भी भ० महावीर की पावन पदरज से पवित्र हो चुकी अनुमानित होती है। उज्जैन में भ० महावीर के भक्त राजा चन्द्रप्रद्योत थे, जिनने उपाध्याय कालसंदीव से म्लेच्छभाषा सीखी थी । कालसंदीव जैनमुनि हुये थे और अपने शिष्य स्वेतसंदीव सहित वीर संघ में सम्मिलित हुये थे। राजा प्रद्योतन भी मुनि हुये थे ।२
उज्जैन के पास ही दशार्ण नामक देश था । उस समय वहाँ के राजा भगवान महावीर के निकट सम्बन्धी थे। उन्होंने अवश्य ही अपने हितैपी-लोक हितेपी सर्वज्ञ प्रभु का स्वागत किया था। उस समय मेवाड़ प्रान्त में मध्यामिका नामक नगरी प्रख्यात थी। वहाँ के नागरिक भ० महावीर के अनन्य भक्त थे। वीर निर्वाण सं०८४ में उन्होंने वहाँ भगवान् का स्मारक स्थापा था।३
सिन्धु सौवीर प्रदेश की राजधानी रोकनगर में भी । भगवान् का समवशरण पहुँचा था। सिन्धु सौवीर के राजा उदयन ने भगवान् की विनय-भक्ति की और वह स्वयं मुनि दीक्षा लेकर वीरसंघ में सम्मिलित हो गये थे।
१. सह., भा० २ सढ : पृ० ६२-६६ २. संद०, मा० २ खंड १ पृ० ६६-१० ३... संजैह, भा० २ खद पृ० १२-101
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