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________________ ( १२७ ) और हिंसा अहिंसा का यथार्थ रूप समझा एवं उसे अत्याचारों की ठीक परिभाषा सूझ गई ! परिणामतः हर कोई भ० महावीर के संघमे सम्मिलित होने के लिये लालायित हो उठा । इन्द्रभूति का अनुकरण अनेकों ने किया ! इन्द्रभूति गौतमने मुनि दीक्षा के साथ ही पूर्वान्ह में निर्मल परिणामो के द्वारा तत्काल बुद्धि, औषधि अक्षय ऊर्जा, रस, तप और विक्रिया रूपी सात लब्धियॉ पा लीं। उनका ज्ञान इतना निर्मल हुआ कि जिनेन्द्र की वाणी का अर्थ उन्होंने ठीक ठीक समझा और उसी समय द्वादशाङ्ग और उपान सहित जिन मुखोद्धत श्रुत की पद रचना की। इनकी कुल आयु ६२ वर्ष की थी; जिसमे लगभग ४५ वर्ष तक वह मुनिदशा मे रहे थे । वीरसंघ के प्रमुख गणाधीश के रूप मे उन्होंने जैनधर्म का विशेष प्रचार किया था। भ० महावीर के निर्वाण दिवस ही वह केवलज्ञानी और सघ नायक हुये थे । वीर निर्वाण से वारह वर्ष पश्चात् ई० पूर्व ५३३ के लगभग वह विपुलाचल पर्वत से मुक्त हुये थे। चीनी यात्री हुएनत्सांग ने इनका उल्लेख भगवान् महावीर के गणधर रूप मे किया है। इन्द्रभूति के साथ उनके भाई अग्निभूति और वायुभूति भी जैनधर्म में दीक्षित हुये थे । जिस समय वीरसंघ में मुनिसमुदाय विभिन्न गणश्मे व्यवस्थाकी सुविधा के लिये विभक्त किया गया, तब यह भी दो गणों के अधिनायक गणधर हुये । इन्होंने भगवान् के जीवनकाल मे ही निर्वाण-पद पाया था ।
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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