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गए तब जीव मुक्त हो जाता है—यही मोक्ष' तत्व है । कार्यकारण- सिद्धान्त पर निर्भर यह वैज्ञानिक प्रणाली है और इसमें सात तत्व स्वतः सिद्ध हैं । इन्हीं सात तत्वों मे (१) पुण्य और (२) पाप को मिला देने से 'नौ पदार्थ' हो जाते हैं ।
जो भावक्रिया आत्मा को कर्म से लेपती है, उसे लेश्या कहते | वह जीवों के भावों का नाप है। हृदय में कितना कपाय है ? इसे लेश्या बता देती है । गर्ज यह कि जिनेन्द्र महावीर की वाणी को सुनकर इन्द्रभूति उस श्लोक का अर्थ तत्र ठीक २ समझने लगे थे, जिसको इन्द्र ने उनसे पूछा था । वह भगवान् के अनन्य भक्त और प्रमुख गणधर हुये । यह उदाहरण मानो यही बताता
कि जिनेन्द्र महावीर के शासन मे रूढ़ि के लिये -स्थिति पालकता के लिये कोई स्थान नहीं है । प्रगतिशील होकर सत्यान्वेषण करना मनुष्य का कर्तव्य है । कोई जैनी जन्म लेने से ही धर्मपात्र नहीं बनता-अजैनी भी यदि पात्र हो तो उसे जैनधर्म की दीक्षा देना चाहिए - उसे जैनी बनाना चाहिये । 'सर्व सुखाय सर्व हिताय' यह प्रगति श्लाध्य है । निस्सन्देह धन्य है वह श्रावणी प्रतिपदा जिस दिन समुदार वीर शासन का प्रवर्तन हुआ । इसी दिन महावीर के उपदेश से पीड़ित पतित और मार्गच्युत जनता को विशेष रूप से यह आश्वासन मिला कि उसका उद्धार होगा । साथ ही शेष जगत ने समझा, उत्थान का मार्ग यही है-जन्म सुलभ आत्मस्वातन्त्र्य पाने का द्वार यही है । वह पवित्र दिवस क्रूर बलिदानों के सातिशय रोकका दिवस है, जिनके द्वारा जीवित प्राणी निर्दयता पूर्वक छुरी के घाट उतारे जाते थे अथवा होम के बहाने जलती आग मे फेंक दिये जाते थे ।' यज्ञयाग के प्रमुख नेता इन्द्रभूति गौतम को अहिंसा का पुजारी बनाकर प्रभु महावीर की दिव्यचाणी ने रक्तमयी यज्ञों का अन्त ही कर दिया ! जनता ने इसीदिन धर्म-अधर्म