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को सुनकर गद्गद् होगये । अन्य श्रोताओं ने भी अपने भाग्य को सराहा
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इस धर्मोपदेश मे वैज्ञानिकरूपेण उन्होंने सात तत्वों की सिद्धि होते देखी । भगवान् ने वह सात तत्व बताये (१) जीव, (२) अजीव, (३) आस्रव, (४) वंध, (५) संवर, (६) निर्जरा और (७) मोक्ष | स्वभाव से दर्शन - ज्ञान गुण युक्त जीव है । अजीव (१) पुद्गल (२) धर्म (३) अधर्म (४) आकाश (५) और काल
| इनमे से पहले चार जीव के साथ 'पंचास्तिकाय' कहलाते हैं; क्योंकि यह ऐसे द्रव्य हैं जिनकी एक काय है । काल द्रव्य भी अजीव है, परन्तु वह एक शरीर वाला नहीं है । वह रत्नोंकी ढेर की तरह लोक मे भरा हुआ है। पूरण ( Birth) गलन (Decay) की शक्ति वाला अचेतन पुद्गल है । धर्मद्रव्य एक सूक्ष्म पुद्गल 'ईथर' के सदृश है, जो जीवादि पदार्थों को चलने में सहकारी है। और अधर्म द्रव्य पदार्थों की स्थिति में सहायक है; जैसे वृक्ष पथिक को ठहरने में कारण है। आकाश भी अजीव है परन्तु उसका गुण पदार्थों को स्थान देना है | लोकमे यही छ द्रव्यें मिलती हैं; जो मुख्यत. जीव- अजीव रूप मे हैं । जीव में कर्म आता है, यह पहले लिखा गया है । इस 'आयाति' का ही नाम 'आसव' तत्व है। कर्म आकर जीव से बंधता है, यह 'वन्धतत्व' है। यहाँ तक वन्धन का वर्णन है। आगे के तत्व जीव को बन्धन मुक्त बनाते हैं। किसी तालाव को गंदे पानी से साफ करने के लिये सबसे पहले यह आवश्यक है कि उसमें गढ़ा पानी आने का मार्ग रोक दिया जावे- इसी तरह कर्मों की आयात रोकना भी आवश्यक है - यह 'संवर' तत्व है । जब नया गंदा पानी नहीं आयगा, तब सिर्फ सचित जल निकालना ही शेष रहता है । यही बात जीव के लिये है । उसे भी संचित कर्मों को निकालना ही शेष रहता है-यही 'निर्जरा' तत्व है । जब सब कर्म झड़