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________________ ( ११४ ) इसी धर्मतत्व की वर्षा करके तीर्थंकर महावीर ने धर्मतीर्थ की पुनर्स्थापना की । सनातन जैनधर्म की क्षीण हुई प्रभा में उन्होंने चार चाँद लगा दिये । सनातन जैनधर्म फिर एक बार चमक उठा ! प्रभु महावीर ने किसी नये मत की स्थापना नहीं की ! अतः स्पष्ट है कि केवलज्ञान प्राप्ति के साथ ही भगवान् का धर्मतीर्थ प्रवर्तन नहीं हुआ। भ० महावीर जृम्भक ग्राम से बिहार करके राजगृह के पास रमणीक विपुलाचल पर्वत पर आकर विराजमान हुये। विपुलाचल पर्वत पर ही इन्द्रभूति गौतम उनकी शरण में आये और प्रमुख गणधर हुये थे । इन्द्र को इन्द्रभति समागम कराने में पूरे दो महीने व ६ दिन लग गये । तत्र कहीं श्रावण कृष्णा प्रतिपदा को वीर भगवान् के तीर्थ की उत्पत्ति हुई- वीर शासन का धर्म साम्राज्य स्थापित हुआ २ । पीड़ित, पतित और मार्गच्युत जनता को उत्थान और कल्याण का सौभाग्य मिला । १. 'पंचसेलपुरे रम्भे बिउले पव्त्रदुत्तमे । गाणादुम-समाइएये देव द्वारात्र वंदिदे ॥१२॥ महावीरणस्यो कहिश्रो भवियबोयस्स ।' —घवल्लटीका पृ० ६१ २. "वापुस्त पठममासे सावराणामम्मि बहुलपढिचाए । श्रभिजीणक्खत्तम्मि य उपपत्ती धम्मवित्यस्स ||१|| ६६ ॥ " विलोय पण्यवि वेताम्बरीय मान्यता है कि भगवान् का पहला उपदेश व्यर्थं गया या, परन्तु यह बौद्धों की नकल ही है, क्योंकि वह मी बुद्ध के प्रथम उपदेश को महत्व नहीं मिला बताते । श्वेताम्बरों ने वीर जीवन को युद्ध जीवन के रंग में रंग दिया है । खेताम्बरीय शास्त्र अपापा नाम की नगरी में चीर शामन की प्रवृत्ति हुई बताते हैं, परन्तु दिगम्बरों की मान्यता है कि विपुल पर्वत पर धर्म तीर्थं की उत्पत्ति हुई । 1
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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