SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१३) श्री इन्द्रभूति गौतम समागम और धर्मोपदेश । "काल्यं द्रव्यषट्कं सकलगणितगणा:सत्पदार्थानवैव; विश्वं पंचास्तिकाय व्रत समितिविदः सप्त तत्वानि धर्मः। सिद्धे मार्गस्वरूपं विधिजनित फलं जीवषट्काय लेश्या; एतान्यः श्रद्धधाति जिनवचनरतो मुक्तिगामी स भव्यः ॥" मगध देश में गौर्वरग्राम ब्राह्मणों का एक प्रमुग्व स्थान था। वहाँ बड़े बड़े वेदपाठी विद्वान् और साथ ही धनाढय ब्राह्मण रहते थे। वह ब्राह्मण, जिन्हें अपनी जाति का बड़ा अभिमान था और जो वैदिक क्रियाकाण्ड करने मे दत्तचित्त रहते थे। 'धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा को वह हिंसा नहीं समझते थे। निरपराध मूक पशुओं के प्राणों का मोह उन्हें नहीं था-वह यज्ञवेदी को उनके लाल-लाल लहू से रक्तरंजित करते थे। ऐसे ब्राह्मणों का मुखिया वसुभति नामक ब्राह्मण था-वह ग्रामपति और गौतम गोत्र का था। लोग उसे द्विजराजशांडिल्य भीकहते थे। वह बहुत ही प्रसिद्ध प्रतिष्ठित और धनाढय था । लक्ष्मी के साथ सरस्वती की भी उस पर कृपा थी-वह अच्छा विद्वान था। उसकी दो पत्नियां थीं, (२) सुलक्षणा पृथ्वी और (२) केशरी ! इन्द्रभूति और अग्निभूति नामक दो पुत्र-रत्न पृथ्वी की कोख से जन्मे थे और तीसरे पुत्र वायभति की माता केशरी थी। यह तीनों विप्रपुत्र महा विद्वान थे-व्याकरण, तर्क, छन्द, पुराण आदि शास्त्रों के वेत्ता थे। वेदों के पारङ्गत विद्वान् होने के कारण निरन्तर वैदिक क्रियाकाण्ड को करने मे मग्न रहते थे। अपनी विद्या का उन्हे बड़ा अभिमान था । इन्द्रभूति गौतम अपने दोनों भाइयों
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy