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जीवनकाल की एकत्रित करके उनको बहत सुन्दर रीति में लेखबद्ध किया है।" उस समय भी अपनी दीन शत्तिानुभव हम कर रहे थे और अाज भी वही परिस्थिति है, स्न्तुि सनीचीन पुन्पार्थ फलीभत होना ही है। अतव यद्यपि हमारा प्रलुत प्रयास भी पूर्ववत "प्राशुलम्चे फले लोभादुद्वाहरिव वामन" बत किया है. तो भी वह भ० बर्द्धमान नहावीर के लोकोद्धारक आदर्श जीवन की प्रामाणिक काकी उपस्थित कर रहा है वही संतोपचा विषय है। प्रस्तुत कृति पर्व संस्करण की द्वितीयावृति मात्र नहीं है प्रत्यन यह नये सिरे से सति और परिवर्तित रूपमै लिखी गई है- अत. एक नवीन रचना है। पहले हमने इसे एक अभाव की पूर्ति के लिये लिखा था क्यों कि तब कोई भी प्रामाणिक वीर चरित्र नई शैली से लिखा हुआ उपलब्ध नहीं था । उसके विपरीत प्रन्तुत रचना सम्गल की माग को पूरा करने के लिये लिखी गई है। जैनमित्र मंडल, दिल्ली" के संकेत पर इसकी रचना की गई: मंडलकी कमेटी ने उसकी पाण्डुलिपि देखी और सराहा भी किन्तु वह उसको प्रकाशित करने में असमर्थ रहे। अतएव अब यह भा० दि. जैन परिषद् प्रकाशन विभाग के सुयोग्य मन्त्री श्री ला० रखवीरसिंहनी सर्राफ के उत्साह से प्रकाशमें आरही है। हम लालाजी की इस कृपा के लिये आभारी हैं। धर्मभाव से-चिसी श्रर्य चा ख्याति लाभ के लोभ से नहीं-इसे हनने लिखा और प्राशनार्थ दिया । हमें सन्तोष है कि इस कृति के द्वारा ज्ञान प्रसार की प्रयास-प्रगति आगे बढ़ रही है । तीर्थकर वर्द्धमान महावीर सर्वज्ञ सर्वदशी ऐतिहासिक महापुरुष थे __ हम लिख चुके हैं कि लोक पूज्य तीर्थकर वर्द्धमान महावीर की नीवनी लिखना कोई सुगम कार्य नहीं है । महती ज्ञानवारी