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प्रस्तावना 'प्रभु स्वरूप अति अगम अथाह, क्यों हमसे यह होय निवाह ?'
कवि को इस पंक्ति के साथ ही हमने सन् १९२४ ई० में सूरत से प्रकाशित हुई अपनी कृति 'भगवान् महावीर' की प्रस्तावना लिखी थी। इस दीर्घ अन्तरकाल मे लोक के मध्य नाना परिवर्तन और ज्ञान गवेषणाये हुई है । तदनुसार भ० महावीर का पतितपावन जीवन चरित्र पुनः लिखना आवश्यक हो गया । यद्यपि यह ठीक है कि भ० महावीर लगभग ढाई हजार वर्ष पहले हुये एक अद्वितीय महापुरुष थे, जिनके विषय मे सहज ही कोई प्रामाणिक निर्णय प्रकट करना सुगम नहीं, परन्तु तो भी उपलब्ध ज्ञान सामग्री के आधार से उसका संकलन 'स्वान्तः सुखाय' और 'परान्तः हिताय' करना अनुचित नहीं हॉ, यह हम मानते हैं कि यह हमारा एक अति साहस है। हम जैसा अल्पज्ञ एक सर्वज्ञ सर्वदर्शी तीर्थदर का चरित्र चित्रण करने मे भला कैसे सफल हो सकता है ? हमारे अनन्य मित्र जैनदर्शन दिवाकर स्व० बैरिस्टर चम्पतरायजी विद्यावा. रिधि ने भी तव ये ही लिखा था कि 'श्री पूज्य परमात्मा भ० वर्तमान महावीर का जीवन चरित्र इतना अद्भुत और अनुपम है कि जिन्होंने उन्हें उनके जीवनकाल में देखा था वे भी उनका जीवन चरित्र वर्णन करने में असमर्थ रहे, तो फिर वर्तमानकाल के लेखकों की क्या शक्ति है जो उसको पूर्णरीत्या वर्णन कर सकें। आज इतने समय के पश्चात् भगवान् की शुभ जीवनी लिखना और उससे यह आशा करना कि वह सवाश ही भगवान् की दिव्य मूर्ति या उनके पूज्य गुणों को दशा सकेगी, एक झठा विचार है; तथापि मेरे परम मित्र वाबू कामताप्रसादजी ने बड़े परिश्रम व कष्ट से बहुत कुछ सामग्री उक्त पूज्य तीर्थकर के