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उन्हे भास हुआ, त्रह मुसीबत में बड़ी हुई कोई सम्भ्रान्त कुल की ललना है । दयावान सेठ ने व्यापारी को मुंह मांगे दाम देकर चन्दना की रक्षा की । वह उसे अपने घर लाया और पुत्रीवत् उसका लालन-पालन करने लगा । चन्दना-सी सुन्दरी पर सेठ नैसर्गिक प्रेम करें, यह उसकी सेठानी को खरा ' उसके वासना मय हृदय ने उस पवित्र प्रेम मे दुर्गंधि को सूंघा । स्त्री का हृदय उसे कैसे बरदाश्त करता ? सेठानी ने चन्दना को बन्धन मे डाल दिया ! दैव दुर्विपाक ने अपना प्रचण्ड रूप दिखाया | चन्दना चुप-सी उसे सहन करती थी । आखिर इस अति' का भी अन्त हुआ ! भगवान् महावीर कौशाम्बी की गलियों में पारण के लिये ईर्यापथ से घूम रहे थे । वह बड़ी अटपटी 'आखड़ी' करके चाये थे । उन्होंने नियम किया था कि मुंडसिर और वधन युक्त युवती सूप में रखकर यदि आहार देती मिलेगी तो वह उस रोज आहार लेंगे । भला यह कहाँ कैसे सुलभ होता ? देहली पर खड़ी एक पैर आगे बढ़ाये हुये राजकुमारी दासी के रूप में पड़गावे उन तपोधन को, तो वह आहार ले । यह कठोर श्रभिग्रह किया था । योगिराट. महावीर ने र्क्स शत्रु की शक्ति का श्रन्त करने के लिये । अन्तराय कर्म विचारा उनके तपतेज के सामने क्या ठहरता ? कुमारी चन्दना ने नैपथ्य में सुनी 'भः महावीर की जय " वह उत्सुकता की मूर्ति बनी द्वारपर आ खड़ी हुई हाथ में उनके नृप था, जिसमें पुराने कोडों के दाने रक्मे थे। दासी को खाने के लिये और मिलता भी क्या ? देहली पर खड़ी हुई चन्द्रना ने भ० महावीर को भर नैन डेस कर अपने भाग्य को सराहा और मस्तक नवावा | दूसरे ना उसने देवा. भगवान उस की ओर श्रा रहे हैं। वह भी भक्ति पिकल हो गई-भूल गई अपनी असमर्थता ! श्रनायास ही
नेपालिया भगवान् को । निरन्तराय आहार हुआ ।