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(६७) पुण्य प्रभाव से कोदों के दाने खीर हो गये हैं। देवोंने पंचाश्चर्य वर्षा कर हर्ष जताया। लोगों ने कहा, 'धन्य हैं पतित पावन भगवान महावीर जिन्होंने पद दलित कुमारी का उद्धार किया। धन्य है, सेठ वृषभसेन जिन्होंने दासी चन्दना को आश्रय दिया।" ब्राह्मणों के प्रभुत्व में दवा हुआ समाज पराये घर में वलात्कार रक्खी गई कुमारी को कैसे आश्रय देता ? परन्तु दयावान थे सेठ वृषभसेन । उन्होंने समाज की परवाह नहीं की-लोकमूढ़ता में वह नहीं वहे । चन्दना की उन्होंने रक्षा की
और विश्वोद्धारक महावीर ने अपने मूक आदर्श कर्म द्वारा उन के सत्कर्म मे चार चाँद लगा दिये | धन्य थे पतितोद्धारक प्रभू । कौशाम्बी मे बड़े-बड़े सेठ साहूकार उनके आतिथ्य के लिये लालायित नेत्रो से देखते रहे; परन्तु भगवान् तो लोक कल्याण के लिये योगी हुये थे। उन्होंने अपने उदाहरण से लोक को यह पाठ पढाया कि वह पतित से घणा न करे । जो अपनी कमजोरी से अथवा वलात् धर्मपद से च्यत हुआ है उसे पुनः उस पद पर स्थापित करना मनुष्य का मुख्य कर्त्तव्य है। मानव मानव मे कोई अन्तर नहीं है । मानव को क्रीतदास बनाकर रखना मानवता नहीं है । सब ही मानव स्वाधीन हैं। कौशाम्बी भर मे भगवान् के इस आदर्श कार्य की धूम मच गई । रानी मृगावती ने भी वह सुना । वह महाभाग चन्दना को देखने आई, बन्धन में पड़ी दासी का यह सौभाग्य । वह लोक के लिये ईर्ष्या की वस्तु थी, क्योंकि लोक तो उसे दासीवत् ही जानता था। भ० महावीर को लोक का यह बुरा व्यवहार अखरा-यह
& 'सो वह तक कोदवन चोद, तदुल खीर भयो अनुमोद । माटी पात्र हेममय सोय, धरम तनैं फल कहा न होय ॥३६॥
-श्री वर्द्धमान पुराण,