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इस भ्रमण में भ. महावीर एक दफा कौशाम्बी भी पधारे थे। कौशाम्बी मे मौन भाषा मे, केवल अपने आदर्श कार्य द्वारा अपना पतित पावन रूप प्रकट किया था। उन्होंने वहाँ सती चन्दना का उद्धार किया था। चन्दना वैशाली के प्रमुख राजा चेटक की सर्वलघु पुत्री थी। सुन्दर सुकुमार उनका रूप था। राजोद्यान में वह एक दफा घूम रही थी । एक विद्याधर ने उन्हें देखा-चन्दना के रूप ने उसे काम पिचाश बना दिया। वह चन्दना को उठाकर ले भागा । पृथ्वी पर होती तो एक बात थी-विद्याधर चन्दना को लिए आकाश में उड़ा जा रहा था। बेचारी क्या करती ? हा, अपने धर्म पर दृढ़ थी वह । विद्याधर उसका कुछ विगाड़ कि इसके पहले ही उसकी विद्याधरी आ गई। वह डर गया। उसने चन्दना को बन में अकेला छोड़ दिया । भीरु पामर और करही क्या सकते हैं ? शक्तिधर के सामने उनका दुस्साहस काफूर हो जाता है। शोकातुर चन्दना को उस समय एक भील ने सान्त्वना दी और उसे वह अपने सरदार के पास ले गया। वेचारी खाई से निकलकर खंदक मे पड़ी। वह दुष्ट भील चन्दना को बहु त्रास देने लगा परंतु चन्दना अपने शील धर्म पर अटल रही। भीलने निराश होकर चन्दना को एक व्यापारी के हाथ बेच दिया । व्यापारी चन्दना को कौशाम्बी में लाया और चौराहे पर खड़े होकर सोलतोल करने लगा आह । कैसा वीभत्स होगा दृश्य वह ? लोगों की मानवता उस समय पशुता मे पलटी हुई थी। परन्तु विचारी चन्दना क्या करती ? कर्मविपाक समझ कर वह सब-कुछ सहन कर रही थी। वह जमाना ही ऐसा था ! त्रियों का कोई मूल्य न था! किन्तु चन्दना को यह मालूम न था कि उसके दु.खों का अन्त निकट है। वह अपने दुखपाश ही नहीं काटेगी बल्कि स्त्री जगत के दुखों का अन्त करेगी। वषमसेन सेठ ने उसे देखा।