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बनता है। योगिराट् महावीर से यह सत्य छिपा नहीं था। दीक्षा लेते ही उन्होंने ढाई दिन के लिये अनशन व्रत ग्रहण किया था-वह एक दम ध्यान में लीन हो गये थे। इस उपवास की परिसमाप्ति पर वह उठे थे और कल्य पुर (कोल्लग सन्निवेश) मे पारण के लिये पधारे थे। वहाँके ज्ञातक कुलनायकने तीर्थङ्कर महावीर को विधि पूर्वक पड़गाहकर क्षीरादि उत्तम आहार प्रदान किया था। भगवान महावीर का यह पहला पारणा था। ___कुंडलपुर से भगवान् महावीर दशपुर गये थे। कुलनायकनृप ने वहाँ भी जाकर भगवान को दूध और चांवल का मीठा आहार दिया था। वह भगवान के अनन्य भक्त थे। उनके राजसी जीवन की सुकुमारता से उन्हें परिचय होगा । वह नहीं चाहते थे कि युवक योगिराट को किसी तरह का कष्ट हो । यही वह मोह है, जिससे युवक महावीर पर पहुंच चुके थे । तो भी परमोत्कृष्ट पात्र को दान देकर उस नप ने महती पुण्य संचित किया। उसके घर पर देवों की दुंदुभि बजी और पंचाश्चर्य हुये।
उपरान्त भगवान् महावीर ने निर्जन और दुरूह वनों मे
१. दिगम्बर जैन शास्त्रों में पलग्राम के राजा कुलनप के यहां भगवान् का प्रथम पारणा हुआ लिखा है। ( उ० पु० पृ० ६१) प्रयोत् राजा और नगर का नाम एक ही है। 'नायखंदवन' जहाँ भगवान ने दीक्षा ली थी, कोल्लग सन्निवेश के प्रति निकट था और कोठग का अपर नाम 'नायकुल' ग्राम भी था। ( सइ०, मा० २ खंद ११० ४६) प्रतः दिगम्बर शास्त्रों का कुलप्राम यह कोल्जग अथवा 'नायकुल ग्राम' ही प्रतीत होता है, नहीं जातिक वंश के क्षत्रिय रहते थे। दिगम्बराचार्य ने वहाँ के ज्ञातिकवंशी नायक का उल्लेख 'कुबनप' रूप से ठीक ही किया है, क्योंकि वह भगवान् के कुल का ही रामा था।