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________________ ( ६३ ) विहार करके योग साधना की थी। वह तीन दिन से ज्यादा एक स्थान पर नहीं ठहरते थे। हॉ, वर्षा ऋतु को विताने के लिये वह चार महीने एक स्थान पर ठहर कर अवश्य विताते थे। योगचर्या और तपस्या में उन्होंने बारह वर्ष व्यतीत किये थे-बारह वर्ष तक वह छद्मस्थ रहे थे। इसलिये ही वह उपदेश नहीं देते थे-सौन रहते थे। इस बारह वर्ष की तपस्या में उन्होंने बारह चातुर्मास विभिन्न स्थानों पर रहकर व्यतीत किये थे। दिगम्बर जैन शास्त्रों में उनके नाम नहीं मिलते। हॉ, श्वेताम्बरीय 'कल्पसत्र' मे लिखा है कि भगवान महावीर ने पहला चातुर्मास अस्थिग्राम में व्यतीत किया था । उपरान्त उन्होंने क्रमश नालन्दा, चंपापुरी, पृष्ठचंपा, भद्दीया, आलभिका, राजगृह, लाढ, श्रावस्ती, विशाला और चम्पापुर में चातुर्मास माढ़े थे। अस्थिग्राम का अपर नाम वर्द्धमान भी कहा गया है और वह आज कल वंगाल प्रान्त में मिलता है। भ० वर्द्धमान के प्रथम वर्षा का स्थान अस्थिग्राम उनके संसर्ग में आकर के उनके नाम से ही प्रसिद्ध हो गया-यह सत्य घटना भ० महावीर के प्रभाव को स्वयं व्यक्त करती है । नालन्दा विहार प्रान्त मे एक मुख्य नगर था। आजकल जैनी जिस स्थान को कुंडलपर (बड़ागाव) कहकर पूजते हैं वह मूलत नालन्दा ही है। पुरातत्व विभाग ने वहीं पास में नालन्दा के खंडहरों को खोद निकाला है। भ० महावीर ने जब वहाँ पर अपना दूसरा चौमासा विताया था, तव वह एक बड़ा नगर था । नालन्दा से योगिराट् महावीर चम्पापुरी पहुँचे जो अङ्गदेश की राजधानी थी। वर्तमान भागलपुर से पूर्व की ओर २४ मील की दूरी पर पथर घाट के पास आज भी चम्पापुर नामक एक ग्राम बसा हुआ है। यहीं पर प्राचीन चम्पा ने युवक योगिराट् महावीर का स्वागत किया था । पष्ठचम्पा और भद्दीया भी उसी के आस पास अनमान की
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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