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[२५] तोसरी विचारणीय बात यह है कि 'कबोय सरीरा' के पूर्व 'दुवे' शब्द का प्रयोग कर उनकी संस्था बताई गई है। . यदि मांस की मोर संकेत होता तो टुकड़ों का बोध करने वाले शब्द विद्यमान होने चाहिए ये किन्तु यहां टुकड़ों का कोई प्रसंग नहीं है। इस कारण मुरब्बे का बोष होना ही युक्ति संगत है। सारांश यह है कि यहां 'सरीरा' शब्ब मुरम्बे के लिये तथा 'दुवे कवोय सरीरा' शब्द 'दो कुष्मांड के मुरबे के लिये ही लिखे गये हैं।
(४) उवाडया 'उवक्खडिया' शब्द पुलिग में है तथा संस्कार का सूचक है। उपासक दशांग पौर विपाक सूत्र प्रादि जिनागमों में मांस के लिये "मज्जिये," "तलिए" शब्दों का प्रयोग हुमा है, 'उवक्खडिया' का नहीं । भगवती सूत्र में भी प्रशस्त भोजन के लिये ही 'उवक्खडिया' शब्द प्रयोग में पाया है। इसका माशय यह है कि मांस के संस्कारों में 'उवक्सरिया' शब्द प्रयोग में नहीं पाता । प्रस्तुत स्थान में जो 'उपपला।' का प्रयोग हुआ है वह भी 'कवोय-सरीरा' के प्रकुष्माण्ड का पाक होने का ही अनुमोदन करता है।
(५) नो महो 'नो अट्ठो' शब्द निषेध के लिये है। रेवती श्राविका ने भगवान् महावीर के निमित्त कुष्मांड पाक बना कर रखा था, किन्तु 'निमित्तदोष' लग जाने के कारण भगवान् ने श्री सिंह शनि को उसे न लाने का निर्देश किया। जहां