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(३) सरीरा 'सरीरा' शब्द कवोय से निष्पन पुलिंग वाले द्रव्य का घोतक है । यदि यहां 'सरिराणि' शब्द का प्रयोग होता तो इसका अर्थ 'पक्षी शरीर पर भी करना पड़ता क्योंकि नपुंसक शरीर शब्द ही शरीर या मुरदे के प्रर्य में माता है, किन्तु शास्त्राकार को वह भी अभीष्ट नहीं था। प्रतः उसने यहां 'शरिराणि' का प्रयोग नही किया है । शास्त्रकार ने यहां पुलिंग में 'शरोरा' शब्द का प्रयोग किया है और उसका पर्थ मुरम्बा या पाक ही है। पुलिंग का प्रयोग होने के कारण ही इतना प्रर्ण भेद हो जाता है। प्रागे पाने वाला पुलिग शब्द 'भन्ने' भी इस मत की पुष्टि करता है।
दूसरी बात यह है कि मांस के लिये सीधे जाति-वाचक शब्द ही प्रयुक्त होते है। उनके साथ 'शरीर' शब्द नहीं लगाया जाता । “विपाकसत्र" में मांसाहार का वर्णन है मगर किसी जातिवाचक संज्ञा के माथ शरीर शब्द का प्रयोग नहीं हुमा है। हां, बनस्पति के साथ 'काय' शब्द मिलता है। यपा-'वनस्पति-काय' जिसका अर्थ है वनस्पति रूप, वनस्पति शरीर ऐसा । वास्तव में सरीरा शब्द वनस्पति के साप उचित संगति पाता है।
प्रस्तुत पाठ में कबोय के साप जो सरीरा शब्द है वह यहां विशेष्य के रूप में ही है। इसलिये यह बात निश्चित है कि यहां सरीरा शब्द का पर्थ मुरमा या पाक ही है ।