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अनैतिकता के निवारण में महावीर वाणी की भूमिको
धर्मायतन व्यभिचार के अड्डे बनने लगे । आत्मा-परमात्मा, लोक-परलोक आदि पर हमारी आस्था घटने लगी है । श्रीडम्बर, पाखण्ड, ढोंग और बाह्य-प्रदर्शन मात्र ही : ग्राज हमारे धर्म के श्रंवशेष रह गए हैं। इन सबके फलस्वरूप श्रास्तिकता के स्थान पर नास्तिकता और ईश्वरवादिता के स्थान पर अनीश्वरवादिता ग्रपने चरण बढ़ाने लगी है । इस प्रकार धर्म मार्ग से हटने के कारण आध्यात्मिकता की उपेक्षा करके हम भौतिकता के दास बनने लगे हैं और भौतिकता के चरणों में नत होकर खानो, पियो, मौज उड़ानो में विश्वास करने लगे हैं ।
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महत्त्वपूर्ण प्रश्न :
उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि श्राज मानवता भौतिकवाद से उत्पन्न अनैतिकता और चरित्रहीनता के दानव से त्रस्त होकर त्राहि-त्राहि कर उठी है | क्या स दानवता (पाशविकता) से प्रांज की मानवता अपना उद्धार कर सकेंगी ? यह एक बड़ा महत्त्वपूर्ण प्रश्न हमारे सामने उपस्थित है ।
महावीर - वारणी की भूमिका
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इस प्रश्न का समाधान भगवान महावीर की वाणी में निहित है । उस पुनीत गरिमामय वारणी का अनुसरण करके हम निश्चय ही एक ऐसी क्रान्ति ला सकते हैं, जिससे विश्व के प्राणिमात्र का कल्याण संभव है । उस वाणी की आधारशिला है " अहिंसावाद" । ग्रहिंसा के माध्यम से ही मानवता, विश्वप्रेम, विश्व बन्धुत्व और वसुधैव कुटुम्बकम् का सर्वव्यापी प्रसार किया जा सकता है । हिंसा जैसा कि कुछ लोगों का विचार है, कायरता की जननी है । यह विचार निश्चय ही अविवेकपूर्ण है । ग्रहिसा तो लोगों को निर्भीक और वीर बनाती है । सच्चा ग्रहिंसावादी कभी कायर नहीं हो सकता । यह तथ्य तो स्वयं महात्मा गांधी के जीवन में चरितार्थ हुआ देखा जा सकता है ।
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जियो और जीने दो :
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'जियो और जीने दो' अर्थात् 'सहअस्तित्व'' अहिंसावाद का मूल मंत्र है । 'सहअस्तित्व स्वर्गीय पं० नेहरू द्वारा प्रसारित पंचशीलों में एक है, जिसका मूलाधार जैन धर्म के पञ्चाणुव्रतों प्रथवा बौद्धों की पंच प्रतिपदाओं में विद्यमान है । राजनीतिक क्षेत्र में सहअस्तित्व का पालन करने से विश्व शान्ति की स्थापना संभव है । किन्तु धन और सत्ताशक्ति के मद में ग्रन्धे अमेरिका जैसे देशों ने इसकी उपेक्षा कर सर्वत्र भय का राज्य व्याप्त कर दिया है । इसका परिणाम वियतनाम के विनाश और अव कम्बोडिया के ज़नत्रास में दृष्टिगत हुआ। चीन की विस्तारवादी नीति, पाकिस्तान की युद्धलिप्सा उसी सहग्रस्तित्व की उपेक्षा के कुफल हैं ।
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चरित्र-निर्माण आवश्यक :
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हिंसावाद को जीवन में उतारने के लिए व्यक्तिगत और राष्ट्रगत चारित्र-निर्माण की परम आवश्यकता है । चारित्र-निर्माण के विना अहिंसा के तत्त्व को श्रधिगम करना संभव नहीं है । भगवान् महावीर की वाणी में चारित्र की विशुद्धता पर विशेष बल दिया