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भगवान् महावीर की मांगलिक विरासत
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. पद्मभूषण पं० सुखलाल संघवी
सामान्य विरासत : .
__ साधारण तौर पर हमें तीन प्रकार की विरासत मिलती है-शारीरिक, सांपत्तिक और सांस्कारिक । माता-पिता और गुरुजनों की ओर से शरीर के रूप, आकार आदि गुरणधर्म की जो विरासत मिलती है, वह है शारीरिक विरासत। माता-पिता या अन्य किसी से विरासत में जो संपत्ति मिलती है, वह है सांपत्तिक विरासत । तीसरी है सांस्कारिक । संस्कार माता-पिता से मिलते हैं, शिक्षक और मित्रों से भी मिलते हैं और जिस समाज में हमारी परवरिश होती है, उस समाज से भी मिलते हैं । यह ठीक है कि जीवन जीने के लिए, उसको विकसित करने और समृद्ध बनाने के लिए तीनों विरासतों का महत्त्व है, किन्तु इन तीनों में संजीवनी की नवचेतना दाखिल करने वाली विरासत अलग ही है और इसीलिए वह चौथी विरासत मंगल रूप है । सामान्य जीवन जीने में प्रथम तीन विरासतें साधन रूप वनती हैं, उपयोगी होती हैं, किन्तु चौथी मांगलिक विरासत के अभाव में मनुष्य का जीवन उन्नत नहीं बनता, धन्य नहीं बनता । यही चौथी विरासत की विशेषता है। यह कोई नियम नहीं हो सकता कि मांगलिक विरासत हमें माता-पिता, अन्य गुरुजन या साधारण समाज से मिलेगी ही, फिर भी किसी भिन्न प्रवाह से वह जरूर मिलती है। मांगलिक विरासत :
शारीरिक, सांपत्तिक और सांस्कारिक विरासत स्यूल इन्द्रियों से समझी जा सकती है, परन्तु चौथी विरासत के सम्बन्ध में यह बात नहीं कह सकते । जिस मनुष्य को प्रज्ञाइन्द्रिय प्राप्त हो, जिसका संवेदन सूक्ष्म-सूक्ष्मतर हो, वही इस विरासत को समझ सकता है या ग्रहण कर सकता है । अन्य विरासतें जीवन के रहते हुए या मृत्यु के समय नष्ट होती हैं. जबकि इस मार्गालक विरासत को कभी नाश नहीं होता। एक बार उसने चेतना में प्रवेश किया कि वह जन्म-जन्मान्तर चलेगी, उत्तरोत्तर उसका विकास होता रहेगा और वह अनेक लोगों को संप्लावित भी करेगी। महावीर की विरासत :
जो मंगल विरासत भगवान महावीर ने हमें मौंपी है, वह कौन-सी है ? एक बात हम पहले ही स्पष्ट समझ लें । यहां हम मुख्यतः सिद्धार्थ-नन्दन या त्रिशला-पुत्र स्थूल देहधारी महावीर के सम्बन्ध में नहीं सोच रहे हैं। शुद्ध-बुद्ध और वासनामुक्त चेतन-स्वरूप महान वीर को व्यान में रख कर यहां मैं महावीर का निर्देश कर रहा हूं। ऐसे, महावीर