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समता-दर्शन : आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
करते हुए वसुधैव कुटुम्बकम् की व्यापक भावना में श्रात्म-विसर्जित हो जाना समता का उन्नायक चरण होगा ।
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(४) परमात्मा दर्शन--- आत्म विसर्जन के बाद प्रकाश में प्रकाश के समान मिल जाने की यह चरम स्थिति है । तव मनुष्य न केवल एक आत्मा अपितु सारे प्राणी समाज को अपनी सेवा व समता की परिधि में अन्तर्निहित कर लेने के कारण उज्ज्वलतम स्वरूप प्राप्त करके स्वयं परमात्मा हो जाता है । आत्मा का परम स्वरूप ही समता का चरम स्वरूप होता है ।
इन चार सोपानों पर गहन विचार से समता दर्शन की श्रेष्ठता अनुभूत हो सकेगी श्रीर इस अनुभूति के बाद ही व्यवहार की रूप-रेखा सरलतापूर्वक हृदयंगम की जा सकेगी ।
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