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युवा पीढ़ी महावीर से क्या प्रेरणा ले ?
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सामाजिक क्षेत्र में महावीर ने जातपांत, छुग्राछूत, अमीर-गरीब के भेद को मिटाकर क्रान्ति की। उन्होंने वर्ण व्यवस्था पर आधारित वैदिक संस्कृति को नहीं स्वीकारा। जाति से उच्च और नीच नहीं बल्कि व्यक्ति अपने कर्म और आचरण से ही हीन अथवा महान् बन सकता है। युवापीढ़ी आज भी महावीर के इन विचारों से प्रेरणा लेकर देश की जातीयता, छुवाछूत आदि व्याधियां मिटा सकती है।
महावीर ने नारी जाति को पुरुपों के समान अधिकार दिया-उन्हें पुरुषों से भिन्न नहीं माना । नारी स्वातंत्र्य की बात करने वाली युवापीढ़ी महावीर से प्रेरणा ले सकती है कि उन्होंने अपने शासन में साध्वियों को दीक्षा दी एवं साधना के मार्ग में समानता का मार्ग प्रशस्त किया । साम्यवादी, समाजवादी, वाममार्गी, दक्षिण पंथी आदि अनेक राजनैतिक संगठन आर्थिक असमानता को नष्ट करने के लिए अपने दलगत विचार रखते हैं। मार्क्स और लेनिन के सिद्धांतों को उद्धत कर उसके अनुसार साम्यवाद या समाजवाद लाने का चिन्तन किया जा रहा है। युवापीढ़ी यदि महावीर के दर्शन को थोड़ा-सा भी पढ़े तो उन्हें लगेगा कि मार्क्स का सिद्धांत महावीर के चिन्तन के समक्ष अधूरा है। जहां मार्क्स सम्पत्ति को वांटने को कहता है वहां महावीर परिग्रह को ही पाप मानकर संग्रह से दूर रहने पर बल देते हैं। महावीर के दर्शन में तो स्वामित्व ही नहीं है। जहां स्वामित्व ही नहीं है वहां कौन किसको देगा और कौन किससे लेगा? सव अपने आप मालिक होते हैं। आर्थिक क्षेत्र में जिस क्रांतिकारी चिन्तन का सूत्रपात महावीर ने किया है यदि उसे हम समझकर अपना सकें तो विश्व की अनेक समस्याएं हल हो सकती हैं। प्राक्रोश का नया आलोक :
युवा पीढ़ी महावीर के जीवन और दर्शन से बहुत कुछ प्रेरणा ले सकती है। महावीर का दर्शन त्रैकालिक सत्य है । वह कभी पुराना नहीं पड़ता, कभी महत्वहीन नहीं हो सकता । हजारों वर्षों के बाद आज विश्व जिस सर्वनाश की चोटी पर खड़ा है उससे वचाने के लिए महावीर का उपदेश ही एक मात्र मार्ग है। युवापीढ़ी अपने आक्रोश को व्यक्त करने के पूर्व उसे समझे। जिन कारणों से उसका विद्रोह है उन कारणों का विश्लेषण करे और महावीर के जीवन एवं दर्शन से उन समस्याओं का समाधान ढूढे । यदि युवापीढ़ी इस दिशा में थोड़ा भी प्रयास करेगी तो उसका मानसिक असंतोप संतोष में बदल जायेगा-उसका विद्रोह निर्माण की ओर अग्रसर होगा । हमें आशा करनी चाहिए कि हमारी युवा पीढ़ी एक बार केवल महावीर के जीवन-दर्शन और साहित्य को पढ़ ही लैगी । साहित्य एवं सिद्धान्त को जानना पहली शर्त है । उसके बाद उस पर चिन्तन, मनन एवं विचार होना ही चाहिए । युवापीढ़ी बुद्धिमान है, तर्क सम्पन्न है और समझ कर उसके पीछे खपने में समर्थ है। इसलिए उसके जीवन में महावीर पालोकस्तम्भ सिद्ध होंगेप्रस्क होंगे।