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सांस्कृतिक संदर्भ
महावीर का संन्यास जीवन के उच्चतम मूल्य की प्राप्ति के लिए था । वैभव को छोड़कर संघर्ष स्वीकारना, भोगों को ठुकराकर त्याग एवं समर्पण के द्वारा जीवन के उच्चतम मूल्य प्राप्ति के लिए युवा पीढ़ी महावीर से प्रेरणा ले सकती है । अर्थ एवं वैभव की चकाचौंध में पढ़कर जीवन को इसी क्षेत्र में होम देने वाले युवक महावीर से प्रेरणा लें तो उन्हें लगेगा कि त्याग करने में प्राप्ति से भी ज्यादा ग्रानन्द ग्राता है । महावीर का जीवन समता, क्षमा, धैर्य एवं हृदय की विशालता का उदाहरण है । चण्डकौशिक सर्प दंशन करता है, ग्वाला कानों में कीलें ठोकता है, गौशालक तेजो लेग्या का प्रहार करता है किन्तु महावीर के हृदय में क्रोध नहीं - घृणा और नफरत नहीं । वहां तो करुणा का अजस्र स्रोत लहराता रहता है । युवापीढ़ी महावीर की इस समता, तितिक्षा एवं क्षमा को अपनाकर देखे तो जीवन की अनेक विसंगतियां, बहुत सारे झगडे और कलह सहज ही समाप्त हो जायेंगे ।
महावीर ने प्रेम का मंत्र दिया - करुणा की वाणी दी । युवापीढ़ी अपने वासनामूलक सम्बन्धों से ऊपर उठकर रंगीन चश्मे से झांकना छोड़कर महावीर के प्रेम का आस्वाद ले । उस प्रेम में राग और द्वेष दोनों ही नहीं है । सवके प्रति एक ही भाव — एक रसता—ग्रन्तरंगता । ऐसी मानसिक स्थिति बन जाने पर भला किसी का कोई शत्रु रह सकता है ? 'मित्ति में सव्वमुएनु' का तत्त्व शब्दों से नहीं ग्राचरण से प्रकट हो जायगा । युवा पीढ़ी महावीर के जीवन की तपस्या, साधना आदि से प्रेरणा ले और उसका अनुसरण करे तो निस्संदेह नक्शा कुछ और ही नजर आये ।
क्रांति की नई प्रर्थवत्ता :
महावीर की क्रांति केवल वार्मिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं थी । वस्तुतः क्रांति की कोई सीमा नहीं होती । महावीर ने विचार और ग्राचार दोनों ही पक्षों में क्रांति की । क्रांति का अर्थ तोड़फोड़, हिंसा यादि नही होता । यह अर्थ तो भ्रांति के कारण होता है क्रांति का मतलब है परिवर्तन । रूढ़िगत परम्पराओं, प्रथात्रों और धारणात्रों मे देह, काल, क्षेत्र के अनुसार परिवर्तन ही क्रांति कहलाता है । युवा पीढ़ी याज क्रांति की बात करती है किन्तु इसके पूर्व उसे महावीर की क्रांतिकारी भावनाओं, विचारों एवं कार्यो को समझ लेना श्रेयस्कर होगा | महावीर की क्रांति केवल शाब्दिक अथवा चिन्तन के एकांगी पक्ष की नही थी बल्कि उन्होंने अपने विचारों को त्राचार में पहले उतारा और फिर दुनिया के समक्ष विचार रखे।
महावीर ने धार्मिक क्षेत्र में यज्ञ, बलिदान, ब्राह्मणवाद एवं पाखण्डों पर प्रहार कर आत्मा की सर्वोच्च सत्ता का दिग्दर्शन करा कर अभिनव क्रांति की । व्यक्ति स्वातन्त्र्य एवं श्रात्मशक्ति के जागरण का संदेश महावीर ने ही दिया । इसके पूर्व भगवान् से मनुष्य अपेक्षा करता था, किन्तु महावीर ने श्रात्मा की अनन्त शक्ति को पहचानने का मार्ग बताते हुए इन्सान को ही भगवान् बताया । कितनी बड़ी क्रांतिकारी वात कही है महावीर ने । मनुष्य की सुपुप्त चेतना, मानसिक गुलामी एवं आत्महीनता की भावना को महावीर ने अपने चिन्तन से दूर किया, युवापीढ़ी महावीर के इम चिन्तन से प्रेरणा ले सकती है ।