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सांस्कृतिक संदर्भ
परे (निर्विचिकित्सक) एवं विवेक से जागृत (प्रमूढदृष्टि ) होगा वही स्वयं के गुणों का विकास कर सकेगा (उपबृंहण), पथभ्रष्टों को रास्ता बता सकेगा ( स्थिरीकरण), सहधर्मियों के प्रति सौजन्य - वात्सल्य रख सकेगा तथा जो कुछ उसने ग्रजित किया है, जो शाश्वत और कल्याणकारी है, उसका वह जगत् में प्रचार कर सकेगा । इस प्रकार जैन धर्म अपने इतिहास के प्रारम्भ से ही उन तथ्यों और मूल्यों का प्रतिष्ठापक रहा है, जो प्रत्येक युग के बदलते सन्दर्भों में सार्थक हों तथा जिनकी उपयोगिता व्यक्ति और समाज दोनों के उत्थान के लिए हो । विश्व की वर्तमान समस्यायों के समाधान हेतु भगवान् महावीर की वाणी की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है, वशर्ते उसे सही अर्थों में समझा जाय, स्वीकारा जाय ।
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