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सांस्कृतिक संदर्भ
जैन धर्म की आधुनिकता :
सूक्ष्मता से देखा जाय तो वर्तमान युग में महावीर द्वारा प्रणीत धर्म के अधिकांश सिद्धांतों की व्यापकता दृष्टिगोचर होती है । जान-विज्ञान और समाज-विकास के क्षेत्र में जैन धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । आधुनिक विज्ञान ने जो हमे निष्कर्ष दिए हैउनसे जैन धर्म के तत्वज्ञान की अनेक वा प्रमाणित होती जा रही हैं। वैज्ञानिक अध्ययन के क्षेत्र में द्रव्य की 'उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तसत्' की परिभापा स्वीकार हो चुकी है । जैन धर्म की यह प्रमुख विशेपता है कि उसने भेद विज्ञान द्वारा जड़-चेतन को सम्पूर्णता से जाना है। आज का विज्ञान भी निरन्तर सूक्ष्मता की ओर बढ़ता हुया सम्पूर्ण को जानने की अभीप्सा रखता है।
__ वर्तमान युग में अत्यधिक आधुनिकता का जोर है । कुछ ही समय वाद वस्तुए, रहन-सहन के तरीके, साधन, उनके सम्बन्ध में जानकारी पुरानी पड़ जाती है। उसे भुला दिया जाता है । नित नये के साथ मानव फिर जुड़ जाता है। फिर भी कुछ ऐसा है, जिसे हमेशा से स्वीकार कर चला जा रहा है। यह सब स्थिति और कुछ नहीं, जैन धर्म द्वारा स्वीकृत जगत् की वस्तु स्थिति का समर्थन है। वस्तुओं के स्वरूप बदलते रहते हैं, अतः अतीत की पर्यायों को छोड़ना, नवी पर्यायों के साथ जुड़ना यह आधुनिकता जैन धर्म के चिन्तन की ही फलश्रुति है । नित नयी क्रांतियां, प्रगतिशीलता, फैशन आदि वस्तु की 'उत्पादन' शक्ति की स्वाभाविक परिणति मात्र है। कला एवं साहित्य के क्षेत्र में अमूर्तता एवं प्रतीकों की ओर झुकाव, वस्तु की पर्यायों को भूल कर शाश्वत सत्य को पकड़ने का प्रयत्न है । यथार्थ वस्तु स्थिति में जीने का आग्रह 'यथार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्' के अर्थ का ही विस्तार है । स्वतंत्रता का मूल्य :
आज के बदलते संदर्भो में स्वतंत्रता का मूल्य तीव्रता से उभरा है । समाज की हर इकाई अपना स्वतंत्र अस्तित्व चाहती है। प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकार एवं कर्तव्यों में किसी का हस्तक्षेप नहीं चाहता। जनतांत्रिक शासनों का विकास इसी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आधार पर हुआ है । भगवान् महावीर ने स्वतंत्रता के इस सत्य को बहुत पहले घोपित कर दिया था। उनका धर्म न केवल व्यक्ति को अपितु प्रत्येक वस्तु के स्वरूप को स्वतंत्र मानता है। इसलिए उसकी मान्यता है कि व्यक्ति स्वयं अपने स्वरूप में रहे और दूसरों को उनके स्वरूप में रहने दे । यही सच्चा लोकतंत्र है । एक दूसरे के स्वरूपो में जहां हस्तक्षेप हुआ, वही बलात्कार प्रारम्भ हो जाता है, जिससे दुःख के सिवाय और कुछ नहीं मिलता।
__ वस्तु और चेतन की इसी स्वतंत्र सत्ता के कारण जैन धर्म किसी ऐसे नियन्ता को अस्वीकार करता है, जो व्यक्ति के सुख-दुःख का विधाता हो । उसकी दृष्टि में जड़-चेतन के स्वाभाविक नियम (गुण) सर्वोपरि हैं । वे स्वय अपना भविष्य निर्मित करेंगे । पुरुपार्थी बनेंगे । युवा शक्ति की स्वतंत्रता के लिए छटपटाहट इसी सत्य का प्रतिफलन है। इसीलिए