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बदलते संदर्भो में महावीर-वाणी की भूमिका
. • डॉ. प्रेम सुमन जैन commmmmmmmmmmmmm.
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। भगवान् महावीर के युग और आज के परिवेश में पर्याप्त अन्तर हुआ है। उस समय जिस धार्मिक अनुशासन की आवश्यकता थी उसकी पूर्ति महावीर ने की। उनके धर्म को आज २५०० वर्ष होने को हैं जव सब कुछ परिवर्तित हुआ है। प्रत्येक युग' नए परिवर्तनों के साथ उपस्थित होता है। कुछ परम्पराओं को पीछे छोड़ देता है। किन्तु कुछ ऐसा भी शेष रहता है, जो अतीत और वर्तमान को जोड़े रहता है। वौद्धिक मानस इसी जोड़ने वाली कड़ी को पकड़ने और परखने का प्रयत्न करता है अतः आज के बदलते हुए संदर्भो में प्राचीन आस्थाओं, मूल्यों एवं चिन्तन-धाराओं की सार्थकता की अन्वेषणा स्वाभाविक है । भगवान महावीर का धर्म मूलतः वदलते हुए सन्दर्भो का ही धर्म है। वह आज तक किसी सामाजिक कटघरे, राजनैतिक परकोटे तथा वर्ग और भाषागत दायरों में नहीं बन्धा । यथार्थ के धरातल पर वह विकसित हुआ है । तथ्य को स्वीकारना
उसकी नियति है, चाहे वे किसी भी युग के हो, किसी भी चेतना द्वारा उनका आत्म- साक्षात्कार किया गया हो। ..... ... ... .. .. व्यापक परिप्रेक्ष्य ::.. .:...:... ... ... . . .. ...... वर्तमान युग जैन धर्म के परिप्रेक्ष्य में बदला नहीं, व्यापक हुआ है। भगवान् ऋषभ देव ने श्रमण धर्म की उन मूलभूत शिक्षाओं को उजागर किया था जो तात्कालिक जीवन की आवश्यकताएं थी। महावीर ने अपने युग के अनुसार इस धर्म को और अधिक व्यापक किया । जीवन-मूल्यों के साथ-साथ जीव मूल्य की भी बात उन्होंने कही। आचरण को अहिंसा का विस्तार वैचारिक अहिंसा तक हुआ । व्यक्तिगत उपलब्धि, चाहे वह ज्ञान की हो या वैभव की, अपरिग्रह द्वारा सार्वजनिक की गई । शास्त्रकारों ने इसे महावीर का गृहत्याग, संसार से विरक्ति आदि कहा, किन्तु वास्तव में महावीर ने एक घर, परिवार एवं नगर से निकल कर सारे देश को अपना लिया था। उनकी उपलब्धि अव प्रारिण मात्र के कल्याण के लिए समर्पित थी । इस प्रकार उन्होंने जैन-धर्म को देश और काल की सीमाओं से परे कर दिया था। इसी कारण जन-धर्म विगत ढाई हजार वर्षों के बदलते सन्दर्भो में कहीं खो नहीं सका है । मानव-विकास एवं प्राणी मात्र के कल्याण में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
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