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' आधुनिक परिस्थितियाँ एव भगवान महावीर का संदेश
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जैन दर्शन भी इस दृष्टि से एकत्व या नानात्व दोनों को सत्य मानता है। अस्तित्व की दृष्टि से सव द्रव्य एक हैं अतः एकत्व भी सत्य है उपयोगिता की दृष्टि से द्रव्य अनेक हैं अतः नानात्व भी सत्य है। एकत्व की व्याख्या संग्रहनय अथवा निश्चयनय के आधार पर तथा नानात्व की व्याख्या व्यवहारनय के आधार पर की गयी है । वस्तु के गुण धर्म चाहे नय विषयक हों चाहे प्रमाण विषयक, किन्तु वे परस्पर सापेक्ष्य होते हैं।
इस प्रकार भगवान् महावीर ने जिस जीवन दर्शन को प्रतिपादित किया है वह अाज के मानव की मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक दोनों प्रकार की समस्याओं का अहिंसात्मक पद्धति से समाधान प्रस्तुत करता है । यह दर्शन आज के प्रजातंत्रात्मक शासन व्यवस्था एवं वैज्ञानिक सापेक्षवादी चिन्तन के भी अनुरूप है। इस सम्बन्ध में सर्वपल्ली राधाकृष्णन का यह वाक्य कि "जैन दर्शन सर्वसाधारण को पुरोहित के समान धार्मिक अधिकार प्रदान करता है" अत्यन्त संगत एवं सार्थक है। “अहिंसा परमो धर्मः” को चिन्तन-केन्द्र मानने पर ही संसार से युद्ध एवं हिंसा का वातावरण समाप्त हो सकता है। आदमो के भीतर की अशान्ति, उद्वेग एवं मानसिक तनावों को यदि दूर करना है तथा अन्ततः मानव के अस्तित्व को बनाए रखना है तो भगवान महावीर की वाणी को युगीन समस्याओं एवं परिस्थितियों के संदर्भ में व्याख्यायित करना होगा। यह ऐसी वाणी है जो मानव मात्र के लिए समान मानवीय मूल्यों की स्थापना करती है, सापेक्षवादी सामाजिक संरचनात्मक व्यवस्था का चिन्तन प्रस्तुत करती है; पूर्वाग्रह रहित उन्मुक्त दृष्टि से दूसरों को समझने एवं अपने को समझाने के लिये अनेकांतवादी जीवन दृष्टि प्रदान करती है, समाज के प्रत्येक सदस्य को समान अधिकार एवं स्व प्रयत्ल से विकास करने के समान साधन जुटाती है। महावीर के दर्शन क्रियान्वयन से परस्पर सहयोग, सापेक्षता, समता एवं स्वतंत्रता के आधार पर समाज संरचना सम्भव हो सकेगी; समाज को जिन अनेक वर्गों, वादों, वर्णों, जातियों एवं उपजातियों में साग्रह वांट दिया गया था, वे भेदक बंधन टूट सकेगे।