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अवकाश के क्षणों के उपयोग की
समस्या और महावीर
• श्री महावीर कोटिया
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अवकाश के समय की समस्या :
आधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों ने मनुप्य को पर्याप्त अवकाश का समय दे दिया है, जिसका वह मनमाने ढंग से उपयोग करने में स्वतन्त्र है। उद्योग-धंवों का मशीनीकरण, आवागमन व संदेशवाहन के द्रुतगामी सावन और यहां तक कि छोटे मोटे घरेलू काम भी यथा वर्तनों की सफाई व धुलाई, मकानों की सफाई व फर्श की बुलाई, रसोई घर का कामकाज आदि के लिए भी अति विकसित पश्चिमीय देशों में स्वचालित मशीनें कार्यरत हैं, तब फिर क्यों नहीं मनुप्य अपने लिए पर्याप्त अवकाश के समय का उपभोग करे ? वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टि से विकसित देशों में जहां अवकाश के समय को यह समस्या अधिक उग्र है वहां अविकसित देशों में अभी इस समस्या का वह रूप नहीं है, और अगर कुछ है भी तो वह साधन सम्पन्न कुछ उच्च वर्ग के लोगों तक ही प्रमुखतः सीमित है।
__ अवकाश के समय का दो दृष्टियों से उपयोग किया जा सकता है । एक निर्माणात्मक रूप में अर्थात् व्यक्ति, समाज व राष्ट्र-निर्माण के कार्यो में, दूसरा रूप इस अमूल्य समय के दुरुपयोग का है, जवकि व्यक्ति मद्यपान करने, जुना खेलने तथा इसी प्रकार के अन्य निरर्थक कार्यों में, व्यसनों में, निठल्ले रहने में ही इसे व्यतीत करदे । पश्चिमी देशों में समय गुजारने के लिए अनेक प्रकार के नये-नये कार्यक्रम, नित नये संगठन रूप ग्रहण करते जा रहे हैं, जिनका उद्देश्य मनुप्य के अमूल्य समय को मौज-मजे के कार्यक्रम में विताना मात्र । ऐसे कार्यक्रमों में हिप्पी-वादियों की भांग, गांजा, चरस, एल. एस. डी. की गोलियों आदि के सेवन के माध्यम से जीवन में सुख-शांति की खोज, वीटलों का मादक संगीत, प्राकृतिक सुरम्य स्थानों पर निर्वस्त्र विहार, सुरापान और उन्मुक्त भोग का आनन्द आदि के विकल्प प्रस्तुत किए जाकर मनुष्य के मन को भरमाया जाता है, उसे मादक सुख-स्वप्नों का अहसास कराकर समय विताने का मन्त्र दिया जाता है। पर प्रश्न यह है कि क्या यह खाली समय का सही उपयोग है ? मनुष्य निठल्ला नहीं रह सकता :
__इस प्रश्न के साथ ही इस समस्या का एक दूसरा पहलू यह भी है कि मनुप्य वस्तुतः निठल्ला रह भी नहीं सकता है । निठल्ले रहकर समय निकालना एक मानवीय समस्या है। मनुप्य काभी अधिक काम करने से नहीं मरा, अगर वह मरा है तो शक्ति अपव्यय व