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________________ ૨૪૨ मनोवैज्ञानिक संदर्भ हम इस पर वहस नहीं करना चाहते हैं कि यह सब कुछ होगा या नहीं पर हमारा प्रश्न तो यह है कि यह सब कुछ हो जाने पर भी क्या जीवन सुखी हो जायेगा ? यदि हां, तो जिनके पास यह सब कुछ है वे तो आज भी सुखी होंगे? या जो देश इस समृद्धि की सीमा को छू रहे हैं वहां तो सभी सुखी और शान्त होंगे? पर देखा यह जा रहा है कि सभी आकुल-व्याकुल और अशान्त हैं, भयाकुल और चिन्तातुर हैं, अतः 'सुख क्या है ?' इस विपय पर गम्भीरता से सोचा जाना चाहिए। वास्तविक सुख क्या है और वह कहां है ? इसका निर्णय किये विना इस दिशा में सच्चा पुरुपार्थ नहीं किया जा सकता है और न ही सच्चा सुख प्राप्त किया जा सकता है । कल्पनात्मक सुख : कुछ मनीपी इससे आगे बढ़ते हैं और कहते है-भाई, वस्तु (भोग-सामग्री) में सुख नहीं है, सुख-दुःख तो कल्पना में है। वे अपनी वात सिद्ध करने को उदाहरण भी देते हैं कि एक आदमी का मकान दो मंजिल का है, पर उसके दाहिनी ओर पांच मंजिला मकान है तथा वायीं ओर एक झोंपड़ी है। जब वह दायीं ओर देखता है तो अपने को दुखी अनुभव करता है और जव वायीं ओर देखता है तो सुखी, अतः सुख-दुःख, भोगसामग्री में न होकर कल्पना में है। वे मनीपी सलाह देते है कि यदि सुखो होना है तो अपने से कम भोग-सामग्री वालों की ओर देखो, सुखी हो जायोगे । यदि तुम्हारी दृष्टि अपने से अधिक वैभव वालों की ओर रही तो सदा दु ख का अनुभव करोगे। . सुख तो कल्पना में है, सुख पाना हो तो झोंपड़ी की तरफ देखो, अपने से दीनहीनों की तरफ देखो, यह कहना असंगत हैं, क्योंकि दुखियों को देखकर तो लौकिक सज्जन भी दयार्द्र हो जाते हैं। दुखियों को देखकर ऐसी कल्पना करके अपने को सुखी मानना कि मैं इनसे अच्छा हूं, उनके दुःख के प्रति अकरुण भाव तो है ही, साथ ही मान कषाय की पुष्टि में संतुष्टि की स्थिति है। इसे सुख कभी नहीं कहा जा सकता। सुख क्या झोंपड़ी में भरा है जो उसकी ओर देखने से आ जायेगा । जहां सुख है, जब तक उसकी ओर दृष्टि नहीं जायेगी, तब तक सच्चा सुख प्राप्त नहीं होगा। सुखी होने का यह उपाय भी सही नहीं है क्योंकि यहां 'सुख-क्या है ?' इसे समझने का यत्न नहीं किया गया है वरन् भोगजनित सुख को ही सुख मानकर सोचा गया है। 'सुख कहां है ?' का उत्तर 'कल्पना में है' दिया गया है । 'सुख कल्पना में है' का अर्थ यदि यह लिया जाय कि सुख काल्पनिक है, वास्तविक नहीं तो क्या यह माना जाय कि सुख की वास्तविक सत्ता है ही नहीं—पर यह बात संभवतः आपको भी स्वीकृत नहीं होगी। अतः स्पष्ट है कि भोग-प्राप्ति वाला सुख जिसे इन्द्रिय सुख कहते हैं-काल्पनिक है तथा वास्तविक सुख इससे भिन्न है । वह सच्चा सुख क्या है ? मूल प्रश्न तो यह है । सुख और इच्छा-पूर्ति : कुछ लोग कहते हैं कि तुम यह करो, वह करो तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी,
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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