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महावीर ने कहासुख यह है, सुख यहां है
• डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल
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सुख की खोज :
- प्रत्येक दार्शनिक महापुरुप त्रैकालिक सत्य का ही उद्घाटन करना चाहता है । उसकी विशाल दृष्टि देश-काल की सीमा में आबद्ध नहीं होती। अतः उसकी वाणी में जो भी तथ्य मुखरित होते हैं, उनमें सभी देशों और कालों की समस्याओं के समाधान अन्तनिहित होते हैं। कुछ समस्याएं ऐसी होती है, जिन्हें काल और देश की सीमाएं स्वीकार नहीं होती । आज सारा विश्व सुख की खोज में संलग्न है । यह शोध-खोज भूतकाल में भी कम नहीं हुई और न भविष्य में ही इसकी गति रुकने वाली है । अतः वास्तविक सुख की समस्या सार्वदेशिक और सार्वकालिक है। आज के विश्व के सामने यह समस्या विकराल रूप मे उपस्थित है।
यहां विचारणीय विषय यह है कि क्या भगवान् महावीर के विचारों में इस समस्या का समुचित समाधान खोजा जा सकता है ? यही यहां संक्षेप में प्रस्तुत है ।
____ यह तो सर्वमान्य तथ्य है कि सभी जीव सुख चाहते है और दुःख से डरते हैं । पर प्रश्न तो यह है कि वास्तविक मुख हे क्या? वस्तुतः सुख कहते किसे है ? सुग्व का वास्तविक स्वरूप समझे विना मात्र सुख चाहने का कोई अर्थ नही । भोग-सामग्री और सुख :
प्रायः सामान्य जन भोग-सामग्री को सुख-सामग्री मानते है और उसकी प्राप्ति को ही सुख की प्राप्ति समझते है, अतः उनका प्रयत्न भी उसी ओर रहता है। उनकी दृष्टि में सुख कैसे प्राप्त किया जाय का अर्थ होता है- 'भोग-सामग्री कैसे प्राप्त की जावे ?, उनके हृदय में 'सुख क्या है ?' इस तरह का प्रश्न ही नहीं उठता, क्योंकि उनका अंतर्मन यह माने बैठा है कि भोगमय जीवन ही सुखमय जीवन है । अतः जब-जब सुख-समृद्धि की चर्चा अाती है तो यही कहा जाता है कि प्रेम से रहो, मेहनत करो, अधिक अन्न उपजायो, प्रौद्योगिक और वैज्ञानिक उन्नति करो-इससे देश में समृद्धि प्रायेगी और सभी सुखी हो जायेंगे । आदर्शमय बातें कही जाती है कि एक दिन वह होगा जव प्रत्येक मानव के पास खाने के लिए पौष्टिक भोजन, पहिनने को ऋतुओं के अनुकूल उत्तम वस्त्र और रहने को वैज्ञानिक सुविधाओं से युक्त आधुनिक वंगला होगा, तब सभी सुखी हो जायेगे।