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मनोवैज्ञानिक संदर्भ
सम्बन्ध के रूप में) व व्यावहारिक उपयोगिता के रूप में इन सबका विशद वर्गन विद्यमान है । यह वर्णन गरिणत शास्त्र के समान प्रत्यक्ष सत्य है ।
आज विश्व में जर्मनी, स्स, अमेरिका आदि अनेक देशों में स्थित मनोविज्ञानशालाएं अनुसंधान के क्षेत्र मे रत है। उनके अनुसंधानों से जन तत्त्व ज्ञान के अनेक सिद्धान्तों की विलक्षणता व रहस्यमयता प्रकट होती जा रही है और मनोविज्ञानवेत्ता जैन तत्त्वज्ञान के निकट माते जा रहे है । यदि भगवान् महावीर के पच्चीसवें निर्वाण गताब्दी पर जन समाज उन मनोविज्ञानवेत्ताओं का ध्यान जैन तत्त्व ज्ञान के सिद्धान्तों की प्रोर केवल आकृष्ट भी कर दे तो भी वहुत बड़ी बात होगी, कारण कि फिर तो अनुसचान कर्ता मनोवैज्ञानिक स्वयं ही जैन तत्त्वज्ञान के सिद्धान्तों के मर्म का उद्घाटन कर देंगे और मानव-जीवन व समाज आदि से सम्बन्धित सब समस्याओं का समाधान भी प्रस्तुत कर देगे । फलस्वरूप मानव मात्र के समक्ष अपने सर्वांगीण विकास, शांति, समता, निराकुलता व परमानंद का मार्ग खुल जायेगा।