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व्यक्ति स्वातंत्र्य और महावीर डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन
मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि व्यक्ति स्वातंत्र्य का आधुनिक संदर्भ में जो अर्थ है, वह महावीर की व्यक्ति स्वातंत्र्य की कल्पना से भिन्न है ।
मूल्यों का अन्तर :
महावीर प्राध्यात्मिक दृष्टि से व्यक्ति-स्वातंत्र्य की कल्पना करते हैं जबकि ग्रानिक संदर्भ विशुद्ध भौतिक भूमिका पर व्यक्ति स्वातंत्र्य का विचार करता है । इसलिए उसका विचार अधिक ठोस, मूर्त और प्रेरक है । याधुनिक संदर्भ व्यक्ति स्वातंत्र्य के नाम पर ऐसी किसी अनुभूति या ग्राजा पर विश्वास नही करता जिसमें लौकिक चेतना शून्य हो । याधुनिक व्यक्ति के लिए व्यक्ति स्वातंत्र्य का अर्थ है - आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से ग्रपना जीवन जीने और विचारों को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता । ग्राव्यात्मिक मूल्यों के बजाय उसके अपने कुछ भौतिक मूल्य हैं जिनमें उसका विश्वास है और जिन्हें राज्य से पाने का उसका मौलिक अधिकार है, वह ऐसी किसी सांस्कृतिक परम्परा और विचारधारा को मानने के लिए तैयार नहीं जो भौतिक संदर्भ में उसकी स्वतंत्रता और उसमें निहित अधिकारों को दमन या ग्रपहरण करती हो । श्राधुनिक मूल्यों का विकास :
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मानव जीवन का ग्राधुनिक संदर्भ और उसके विचार वस्तुतः उस प्रक्रिया की उपज है जो यूरोप के जीवन को अभिशप्त कर देने वाले पोपवाद के विरुद्ध बगावत के रूप में उत्पन्न हुई थी । लूथर और वाल्तेयर उसके गुग्रा थे । फ्रांस को राज्यक्रांति ने नए समाज की रचना में योग दिया । लेकिन मशीनीकरण और सामूहिक उत्पादन के फलस्वरूप नया वर्ग खड़ा हो गया जिसने व्यक्ति स्वातंत्र्य का अर्थ आर्थिक शोषण की स्वतंत्रता के रूप में किया । प्रार्थिक उत्पीड़न के सामने व्यक्ति स्वातंत्र्य अर्थहीन हो उठा । और नया साम्यवादी ग्रान्दोलन उठ खड़ा हुआ ।
इस प्रकार ग्रावुनिक संदर्भ जीवन के विशुद्ध भौतिक मूल्यों से प्रतिवन्द्व है । इसे प्रतिवद्धता को ईश्वरवाद या कर्मवाद की सुन्दर से सुन्दर व्याख्यायों द्वारा कहां तोड़ा जा मकता है ।
महावीर और समकालीनता :
महावीर के व्यक्ति स्वातंत्र्य का अर्थ था इच्छाविहीन स्वानुभूति का जीवन | वह व्यक्तिवादी उत्पादनवाले समाज में उत्पन्न हुए थे और उन्होंने इसीलिए व्यक्तिगत त्याग पर जोर दिया । अपरिग्रह का प्रादर्श उन्होंने इसलिए रखा था क्योंकि उस समय श्रम और